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________________ प्रभु न. 10. 32-12-2 - . . स अमित मारतीय परिवार हर आदमी अपन हर आदमी अपनी असली स्थिति में कायम रहता था। दर असल देखा जाय तो असली स्वामीवत्सल्यता का मतलब इसी સમાજસે અપીલ. में है और वे इसीमें अपनी जाति धर्मका गौरव समजतेथे / .. उन्नति और अवनतिका प्रवाह सदाकाल बहता ही रहता है इसी नियम के अनुसार आज पोरवाल जाति मणानि सिरोही में ता. 6-12-32 को उत्साही सजनोंकी "मुख हो रही है और जगह 2 क्लेश और द्वेषसे परीपुर्ण है मीटिंग हुई जिसमें सर्व सम्मति से अखिल भारतवर्षीय पोरवाल इन सबको दुर करनेके लिये और जातिको ठीक रास्तेपर लानेके महा सम्मेलन की अपील जैन वर्तमानपत्र में भेजनेका निश्चय लिए हम सबको तन, मन, धन, से तैयार होकर कार्यक्षेत्रम हुआ। कार्य कारिणी कमेटी के प्रेसीडन्ट शेठ भभुतमलजी उतरजाना चाहिए ताकि हम अपनी जातिको संसारकी और चतराजी देलदर निवासी शेठ भीमाजी मोतीजी (बम्बाई वाले) जातियों के साथ उन्नतिका घुडदौड में सामिल रखसके इसके शाह एस. आर. सींधी जनरल सेक्रेटरी बीजेराजजी सींधी व लिये एक सम्मेलन करनेके सिवाय दुसरा कोई उपाय कि पुनमचन्दजी बहितरा, पुनमचन्दजी हंसराजजी सीधी ट्रेजरर लहाल नजर नहीं आता। अतएव मेरा इरादा यह है कि मुकरर किये गये और पन्दर * महाशयोंकी एक 'कमेटी बामण वाडजी में चैत्र महीने में ओलियांके मौके पर सम्मेलन बनाई गई। के लिये विचार कियाजाय और वहाँपर इसकी रुपरेखा तैयार सर्व सज्जनों की जयजिनेंद्रके पश्चात् निवेदन है कि कर अखिल भारत वर्षीय सम्मेलन किसी खास जगहपर जो पोरवाल (प्रागवट) ज्ञाति जोकि किसीसमय भारत में पुर्ण उन्नति सबको अनुकूल होगी तय किया जायगा ! अतव आप कृपा के शिखरपर पहुँचीथी और जिसके हाथ भारतका आधेसे कर अपनी योग सम्मति इस विषयपर प्रदान कर और अपने जियादा वाणिज्य था और जिसके जहाज भारतके बाहिर केम्बेसे आसपास के गांवोके पोरवाल कार्यकत्ती और उत्साही सद्देश देशान्तरीको आते और जातेथे। आज उस जातिका दिनों गृहस्थों के नाम व गोत्र व मनुष्य संख्या व घरकी संख्या दिन पतन हो रहा है यदि इसका उपाय- शीघ्र न कियागया नीचे के कोष्टक में भरकर भेजे ताकि जहां 2 पर पोरवालों के तो यह जाति भारत में 50 वर्षों से अधिक नहीं जी सकती घर हो वहां 2 उनको ‘साहित्य या पत्रिकाएँ भेजने में पूर्ण एक समय ग्रहथा जब इस जातिका दार-दौरा भारतमें ही 'सुभीता रहे। आपका उत्तर व सम्मति आनेपर आन्दोलन नथा परन्तु सारे संसार में था जिस जातिकी कीर्तिका उज्जवल पत्रिकाओं द्वारा किया जायगा। इतिहास अबतक आबु, देलवाडा के अनुपम जिनालय और भवदीय, .. सिरोही व राणकपुरके जैन मन्दिर बता रहे है। सींधी शाह समर्थमल, रत्नचन्दजी वकील. - इस जाति में सबसे बढिया भाव जो स्वामीवत्सल्यताका जनरक सेक्रेटरी, अखिल भारत वर्षीय पारवाल महासम्मेलन, था वह सर्वथा लोप होगया है। उस भावके लोप हो जानेसे मु. पो. सिरोही (राजपूताना) आज जातिकी हीन अवस्था हो रही है। आपको इतिहाससे यह बात विदितं ही हैं कि एक ही चंद्रावती नगरी में जो विद्वानान अश सभ२. वर्तमान आयुरोढ से चार मील दक्षिणामें थी और जहांपर (न्यायनांसपथ)" ... पारवालों के हजारों घर थे और उनमें संगठन होनेकी बजेह बा समयथा 6 वा ) 20ii ती भनेको से सब करोडाधीपति थे और सारे शहरका खाना एक सज्जनता भंग भने भीमने युनिवर्सिटीना न्युटना (पोरवाल) के घरवारी 2 से होता था! वहां यहांतक स्वामी समन्याय प्रयभाभां, म युशना भ यये थे, वत्सल्यंता का हिसाब था कि यदि किसीको व्यापार में हानी न्यायना माहितीय अथ"प्रमाणनयत-त्वालोक " (प्रभागुनयहो जाती, जहाज दुबजाता था और किसी वजहसे नुकसान वासो ) न्यायशासना धु२५२ विहान वादहो जाता तो वहां की पंचायतका यह नियम था कि वे एक वससि मनाक्ष. ते सखा भने सुंद२ माखमाधितीनामना 2 लाख रुपया घरपति दे देते थे और जिस वहभी करोडा-तने नवी असि साथै यो समयमा हार ५से. धीपति हो जाताथा और इसी तरह हरएक को सहायता:देनेसे भी अयने न्याय-व्यतीर्थ, ताि भुनिराश्री हिमांशु મહારાજથી આ પ્રશ્ન ઉમાતિથી જ થયેલા છે નહિ કે વિજયજીએ એડીટ કરેલ છે અને જેમાં નેટ, પાઠાંતર, અનુકોઈની પણ દરવણથી. આ પ્રશ્નના ઉત્તરની રાહ તા 15-12- ક્રમણિકા આદિ આપી પ્રસ્તાવનામાં ગ્રંથ, ગ્રંથકાર અને જૈન 32 સુધી નહિ મળે તે મારે મારી શકિત મૂજબ પ્રયત્ન ન્યાયના વિશ્વમાં સારો પ્રકાશ પાડે છે. અડાવીશ રતલી સુંદર કરવા પડશે જે આ પ્રથાના ઉત્તરે મને 15-12-72 સુધી કાગળમાં, કાઉન સબપેજી સાઈઝમાં લગભગ સવાબસે પૃષ્ઠના મળશે તે મારા બીજા પ્રશ્ન પણ હું પૂછી શકીશ માટે આ ME2 अंयनी भित भात्र 3...-14-. याहयाना छे. पोटगी मा . પ્રશ્નના ઉત્તરો જરૂર તા૧૫–૧૨ - 2 સુધીમાં મોકલાવશોજી. भगवानुआ:श्री. साया साधुसन पास, મેસર્સ એ. એમ. એન્ડ કું.) શ્રી વિજયધમસૂરિગ્રંથમાળા प्रतितासगीला शाहुना .. भु. पाहाता છેટાં શરાફા 1008 વાર વંદણ સ્વીકારશે. (हीभावा) ). Grt- (भागवा) (भाव) Printed by Lalji Harsey Lalan at Mahendra Printing Press, Gaya Building Masjid Bunder Road Bombay, 3 and Published by Shivlal Jhaverchand Sangh vi for Jain Yuvak Sangh. at 26-30, Dhanji Street Bombay, 3.
SR No.525917
Book TitlePrabuddha Jivan - Prabuddha Jain 1932 Year 02 Ank 01 to 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrakant V Sutariya
PublisherMumbai Jain Yuvak Sangh
Publication Year1932
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Prabuddha Jivan, & India
File Size8 MB
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