________________ at020-5-33 हिन्दी विभाग. भोजन मिलता हो वह देश किस तरह प्रति वर्ष करोडों रुपया विदेशी चीजें खरीद कर बाहर फेंक सकता है ! इस कारण प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है कि उनको अपने अपनी समाजका पुनरुत्थान कैसे हो? दीन और हीन भाइयों की अवस्था पर ध्यान रखते हुये -शेठ अचलसिंहजी. स्वदेशी वस्तुओं का ही इस्तैमाल करना चाहिये और मुख्य[गतांक से चालु ता जैनियों का धारण उनका धर्म एकेन्दी से लेकर पंचेन्द्री (1) बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह और अनमेल-विवाह को रोकना चाहिये। ' जीव तक दया पालने का है। (2) पर्दा जो स्वास्थ्य, पुरुषार्थ, और गृहस्थ जीयन के मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे नव्युवक स्वयम् स्वदेशी बास्ते महा-हानिकारक है उसका सर्वथा बहिकार होनाचाहिये। वस्तु का प्रयोग करेंगे और अन्य जनता को करावेंगे। .. (3) नुकता को कतई बन्द करना और बियाह की शारीरिक शक्ति वेशुमार फिजूल खर्चियों को दूर करना चाहिये। आज जब मैं जैन जाति के युवकों की शारीरिक (1) जेवर, रेशमी बस और हाथीदांत आदी की स्थिति को देखता हूँ तो मेरे दिल को बड़ा धक्का लगता है। बनी दुई अपवित्र चीजों में जो फिजूल खर्च होता है उसे जक्की उनके मस्तिष्क में विचार होने चाहिये. जबकी रोकना चाहिये। उनके रंगों में खून का जोश होना चाहिये, जब की (5) कुछ लोभी और अज्ञानी पुरुष लडकियों पर उनके चहरे पर चमक और हाथों में कार्य शक्ति होनी रुपया लेते हैं और कुछ धनी पुरुष लड़कों पर रुपया माँगते चाहिये तब हम उन्हें क्या पाते है। उनके शरीर का पूर्णहैं, उसे रोकना चाहिये। विकाश होने भी नहीं पाता कि उनका शरीर शिथिल होने (6) वेश्यानृत्य आदि बुरी रिवाजें वन्द करनाचाहिये। लगता है, चहरे पर हवाइ उड़ने लगती है और शीवही वे . . स्वदेशी केवल डाक्टरों और वैद्यों के मतलब के हो जाते है। इसका / देश और समाज के सामने बेकारी की समस्या दिन कारण क्या है ! समाज में फैली हुइ सामाजिक कुरीतियाँ पर दिन बढती जा रही है। हजारों युवक कोलेजों और हमारा रहन-सहन का गलत तरीका और व्यायाम की कमी। स्कूलों से डिग्रियाँ लेकर बेकार फिर रहे हैं, पर उनके लिये मैं नवयुवकों से जोर से अपील करता हूँ कि वे शारीरिक कोई काम नहीं है। अधिकांश व्यवसाय के लोगों की आज आवश्यकता की अव अवहेलना न करें और शक्ति को उपासबसे बड़ी शिकायह है कि उनके व्यवसायमें अब शिथिलता सना प्रारम्भ कर दें। नियमित व्यायाम करना हर सफलता बढ़ता जा रहा 6, दश का सम्पात्त का याद हास हा ता की कुळजो है। इस युग में निर्बल होना सब पापों की जड वहाँ का कोई भी अङ्ग फलफूल नहीं सकता / शरीर का यदि है। निर्मल मनुष्य किसी धर्म का सथा पालन नहीं कर कोई भी भग सबल बनना चाहता है तो उसके लिये यह सकता। / भावश्यक है कि शरीर की केन्द्रीय शक्तियों बढती जाये। साम्प्रदायिक बन्धनों को छोडो? यदि शरीर में फेंफडा कमजोर हे तो धीर धीर शरीर के सभी - यह यग संगठन का युग है। सब धर्म और जातियों अङ्ग रक्तहीन होकर निर्जीव हो जायेंगे। सारे देश इस साम्प्रदायिक मत-भेद को छोडकर विस्तीर्ण क्षेत्र में ला रही बात का अनुभव करते हैं और वे अपने देश की सम्पत्ति है। उस समय भी जैन-जाति क्या पारस्परिक मत्त-भेद आर बढाने में लगे हुये हैं। आज इंगलैण्ड, अमेरिका, रूस सभी मनोमालिन्य में ही लगी रहेगी! क्या यह सम्भव नहीं है देशों में स्वदेशी का युग है। रूस जैसा अन्तर्राष्ट्रीय-बाद कि हम सम्प्रदाय के तंग दायरों को छोड कर महावीर भगको मानने वाला देश भी पञ्चवर्षीय योजना द्वारा देश की वान के एक झंडे के नीचे आकर खडे हो जायें। अब तो उत्पादक शक्ति को बढ़ाने में लगा हुआ है। अमेरिका का जैन-जाति एक भाव, एक शक्ति, एक प्रवाह में संयुक्त प्रेसीडेन्ट रूजवेल्ट और इंगलैंड का युवराज प्रिन्स ओफ करनेकी आवश्यकता है। यह भडे हर्ष की बात है कि जैनवेल्स भी अपनी अपनी जातियों को स्वदेशी का सन्देश दे जाति के युवकों में यह सद-भावना उत्पन्न हो गई है और रहें हैं / इस स्वदेशी के युग में प्रत्येक भारतवासी का भी मुझे विश्वास है कि अब वह सस्य शीघ्र ही आने वाला है कर्तव्य है कि यह सोचे कि उसे कया करना चाहिये। जिस जब हम जैन-धर्म के अनुयायियों को एक संगठन में जैन देश में चार करोडसे भी अधिक लोगों को एक ही बार सिद्धान्तों का प्रचार करते हुये देखेगें। આ પત્ર મનસુખશાલ હીરાલાલ લાલને જૈન ભારૈદક પ્રિન્ટીંગ પ્રેસ, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ નં. 4 માં છાયું છે. તે શૈકલદાસ મગનલાલ શાહે “જૈન યુવક્ર સંધિ' માટે 26-3, ધનજી સ્ટ્રીટ, મુંબઈ , માંથી પ્રગટ કર્યું છે.