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SHRUTSAGAR
February-2020
सोवनगिरि फलवधि(धि) तिमिरीपुरि, जोधनयरि कलिकुंडजी। जेसलमेरई मूरति अंतर, एकइ नाम अखंडजी ॥८॥ चरणकमलि... अहनिसि प्रभु तुम्ह सेवा सारइं, पउमावइ धरणिंदजी। सुर नर किंनर असुर विद्याधर, पाइ प्रणमइ जणवृंदजी ॥९॥ चरणकमलि... पास जिणेसर इणि कलिकालई, हमरइ तूं आधारजी। पूरव सुकृत-संजोगइ पाया, जय जय जिन जयकारजी ॥१०॥ चरणकमलि... राजचंद्र सुहगुरु सुपसायई, सीसि थुणिउ जिनचंदजी। पासकुमार सयल सुखदाई, जयनिधानि आनंदिजी ॥११॥ चरणकमलि...
लटवट होय रह्यौ विषयरस फंद मे। दीप की सिखामांहे पतंग ज्युं जलायगौ॥ मिनष जमारौ पाय नही सेव्या जिनराज प्राणी। बांधी मुठी आयौ है पसार हाथ जायगौ ॥
प्रत सं. १२८०३२ भावार्थ :- विषयरस के फंद में लिपटा हुआ मनुष्य उसी प्रकार मृत्यु को प्राप्त करता है, जिस प्रकार पतंग दीपशिखा की अग्नि में जलकर अपनी जान दे देता है। जो प्राणी मनुष्यजन्म पाकर भी जिनराज की भक्ति नहीं करता है, वह मुट्ठी बाँधे इस संसार में आता है और हाथ फैलाए हुए चला जाता है।
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