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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 16 श्रुतसागर फरवरी-२०२० कवि जयनिधान कृत पार्श्वनाथ विनती साध्वी विनीतयशाश्रीजी प्रस्तुत कृति राजचंद्रजीना शिष्य कवि जयनिधानजीनी लघु रचना छे । कृतिकारे अहीं पार्श्वप्रभुना गुणोनी स्तवना वर्णवता स्वदोषोनु सामान्य पणे निरूपण कर्यु छे। खास तो कृतिमा उल्लेखित पार्श्वनाथ प्रभुना के तेमना तीर्थोना संदर्भो काव्यनी ऐतिहासिक सामग्री छे। जो के कविनी, तेमना गुरुना सत्ता समयनी के गच्छादिनी कोइ विगत मळे तो प्रस्तुत कृतिगत सामग्री वधु मूल्यवान साबित थाय। प्रस्तुत कृतिनुं संपादन गोडीजी जैन देरासर पायधुनि मुंबईना भंडारनी अनुमानित १९मी सदीनी हस्तप्रतना आधारे करेल छ । O॥ चरणकमलि तोरइ मन लीणउ, श्रीचिंतामणि पासजी। जन-मनवंछित सुरतरु अभिनव, पूरि अम्हारी आसजी। ताल तमाल अनइं वनराई, घन घनश्याम सरीरजी। वामानंदन जगदानंदन, सिवसहकार-सुकीरजी ॥१॥ चरणकमलि... लख चउरासी जोनि मझारइं, फिरियउ वार अनंतजी।। तुम्ह दरसण विणु करुणासायर, चउगइमांहि भमंतजी ॥२॥ चरणकमलि... कुगुरु कुदेव कुमत-पथ सेवी, कीधां बहुअ मिछातजी। पंच प्रमाद विषयरसि रातउ, काल न जाणिउ जातजी ॥३॥ चरणकमलि... क्रोध मान मद मच्छर माया, कूड कपट किया कोडिजी। इंद्रिय वसि अहनिसि जिनराया, वीनवु हिव कर जोडिजी ॥४॥ चरणकमलि... जगगुरु तुझ सरणइं हुं आयउं, तूं समरथ संसारिजी। मात पिता जगबंधव तूं ही, भवजलधी मोहि तारिजी ॥५॥ चरणकमलि... अश्वसेनकुल-कमल-दिवायर, नव कर काय प्रमाणजी।। परमपुरुष जगवच्छल सामी, तूं हि ज चतुर सुजाणजी ॥६॥ चरणकमलि... थंभणपुरि अरिथंभण तूं ही, जीराउलि वरकाणजी। संखेसर गउडीपुरि मगसी, नारंगपुरि सपराणजी ॥७॥ चरणकमलि... For Private and Personal Use Only
SR No.525355
Book TitleShrutsagar 2020 02 Volume 06 Issue 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2020
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
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