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December-2019
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SHRUTSAGAR तासु शिष्य चारित्रविजय, उपाध्याय गुणजांण। वखतावर मुनिवर हूआ, सकल-कला-सुविहांण अंतेवासी जेहनो, धर्मविजय पु(पं)न्यास। धर्मध्यांन धारी करी, लह्यो स्वर्गपुर वास तास पाट जग दीपता, पुन्यवंत परसिद्ध । भीमविजय पुं(पं)न्यास प्रभु, सकल गुणां की सिद्ध भाग्यवांन गंभीर-उदधि, दया-मयाभंडार । मणिधारी मोटो मुनी(नि), गौतम को अवतार
॥७॥ इण कलियुगमाहे हु(हू)ओ, धरमधुरंधर धीर। चावो जस चक्का चिहुं, वडवखती' वड वीर स्यामवरन तन सोहतो, मेघ समोवडि(ड) रूप। कंचन जल वूठो कहर , अवनिमांहि अनूप खलखंडण मंडणरिधू', जती(ति) वडो जालिम्म । रोर-विहंडण सुखकरण, पातिस्याहां मालिम्म' भीम पराक्रम भीमसो, स्वामि काम समरथ। दांण पराक्रम करणसो", ह(हे)मु२ पराक्रम हथ मन मोटि मोटो मरद, हु(हू)ओ महा बलवांन । लक्ष्मी को लाहो लीयो, दीध सुपात्रा दांन बहु परिवारि पूजतो, सिंघाडो सुखदाय। माहोमांहि मिलाप घण, दिन दिन वधे सवाय
॥१३॥ सुगुरु भीम खाट्यो सुजस, परगट पर उपगार । कीधा काम भला भला, सफल कीयो अवतार
॥छंद-भुजंगी॥ कीयो आपणो सप्फलो अवतारं, भली भांति पाली क्रियादिकधारं । करी जात(त्र) शेज आबू मग्गसी३, वडा दांन दीधा मनांसुं हव्वसी४ ॥१५॥
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