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श्रुतसागर
दिसम्बर-२०१९ लाल मुनि रचित भीमविजय पंन्यासजी गुणवर्णन छंद
गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रस्तुत कृति हिंदी भाषानी छांटवाळी मारुगुर्जर रचना छ। कृतिनो परिचय श्रीभंवरलालजी नाहटाए प्रकाशित कर्यो होई अमे ते अंगे कशुं लख्यु नथी। विशेषे एटलं जणाववानुं के प्रस्तुत कृतिनुं संपादन कोबा ज्ञानभंडारनी एकमात्र हस्तप्रत क्र. ६७०१९ना आधारे करायुं छे, जो के कृतिनुं आलेखन लहियानी असावधानीने कारणे केटलेक अंशे अशुद्ध थयु छे जे अमे अमारी समज मुजब सुधारवा प्रयत्न कर्यो छे । खास तो अहीं कृतिनो शब्दकोश पण महत्वनो छ। अमारी भाषाकीय मर्यादाने कारणे अमे घणा शब्दोना अर्थो आपी शक्या नथी, वाचको ते अंगे अमारुं ध्यान दोरे तेवी आशा छ । अन्य प्रत उपलब्ध न होवाने लीधे केटलाक पाठो पण स्पष्ट थई शक्या नथी।
कर्ता - कृतिना अंते कर्ताए पोतानो लाल मुनि' तरीके उल्लेख कर्यो छे । ते सिवाय तेमना गुरु वगेरेनी कोई माहिती प्रस्तुत कृतिमां उपलब्ध थती नथी। भीमविजयजीनी शिष्यपरंपरामां थयेल पं. गंभीरविजयजी द्वारा १९मी सदीमां लखायेल प्रत क्र. ६३१० आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमा उपलब्ध छ । तेमां शिष्य-परंपरा आ प्रामाणे छे- श्री भीमविजयजीना शिष्य मुक्तिविजय, तेमना शिष्य पं. प्रमोदविजय, तेमना शिष्य पं. प्रसिद्धविजय, तेमना शिष्य पं.गंभीरविजय। भीमविजयजीनो कालधर्म समय कृतिमा वि.सं. १७७१नो जोवा मळे छे। तेथी कृति रचनानो समय ते पछीनो होय ते स्वाभाविक छे।
on ऋषभदेवाय नम:॥ सरसति माता वचन सुभ, दीजै उकति उदार। भीमविजै गुण वर्णवं, आणी हरख अपार ।
॥१॥ तपगच्छनायक सुरतरु, क्रियावंत किरपाल' । हीरविजैसूरीश्वरू, भट्टारक-भूपाल
॥२॥ तसु शिष्य गुणनिधि सोभता, पाठकपदवीधार। पंडितराज प्रवीण अति, सोमविजै सिरदार 1. वाचक की सुविधा हेतु भंवरलालजी नाहटा का लेख भी हमने इस अंक में पृष्ठ संख्या-१९ पर प्रकाशित किया है- संपादक.
॥३॥
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