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श्रुतसागर
दिसम्बर-२०१९
अनुक्रम १. संपादकीय
रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी 3. Awakening
Acharya Padmasagarsuri ४. भीमविजय पंन्यासजी गुणवर्णन छंद गणि सुयशचंद्रविजयजी ५. भीमवजियगणि रास का सार भंवरलालजी नाहटा ६. नवतत्त्वविचारगर्भित महावीरजिन स्तवन
सुकुमार जगताप ७. गुजराती माटे देवनागरी लिपि के
हिन्दी माटे गुजराती लिपि हिन्दवी ८. प्राचीन पाण्डुलिपियों की संरक्षण विधि
राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्तकुमार १०. समाचार सार
चींटी चावल ले चली अधबिच मिली दाल । कबीर दौ दौ ना वणा इक राखि इक डाल ॥
प्रत क्र. १३१३२८ भावार्थ- संत कबीरदासजी कहते हैं कि चींटी चावल लेकर जा रही थी और बीच में दाल मिल गई। दोनों को उठाना संभव नहीं बना। तात्पर्य यह है कि अपनी क्षमता के अनुसार एक बार में एक ही कार्य करें, एक साथ दो कार्य करने से दोनों ही हाथ से निकल जाएँ।
* प्राप्तिस्थान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में
डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
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