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December-2019
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SHRUTSAGAR तसु पाटि मुकति(क्ति)विजै प्रतपै, जगमांहि घणो जस लोक जपै। सिरदार सपूत सुशिष्य वडो, अवनी विचि कोइ नही इवडो गुणजांण गुणी सब तै सुगरो, गुरदेव तणो भगता अजरो। दिन द्वादस गाइ दुहाइ सलै ४४, गुरु-फूल चलाविय१४५ गंग भिलै तस ऊपरि कीध वडी छतरी, चित्रकार भली विधिसुं चितरी। करवाय चि दिसि कोट खरो, विचि राखि अतीतह१४६ कीध वरो ॥९६॥ वलि कूप अणायर ४७ वावि करै, नर नारि जिंहा किण नीर भरै। लगि बाग वडो फु(फू)लवादि(डी) फली, मचि४८ होइ रहै जिम कुंज-कली ॥९७।। नर छैल छबील कीता निरखै, हित धारी हियै सबही हरखै। घनसार घसे शुभ लोक घणा, पगला चरचै प्रभु भीम तणा किणि पूरव पाप विसेष करी, उपज्यो अडि१४९ आय कर्म अरी। भरी कांम(न?) भखाय५० निवाब भणी, किणि दोषिय५१ फोज चढाय घणी ॥१९॥ करि(री) बंधक सालह१५२ जोरि(र) कि(की)यो, लखि(ख) माल लुणे५३ चूणि९५४ लूटि(ट) लि(ली)यो। अजमेरगढे फू(फु)नि५५ मुक्तिविजै, मिलि जाइ निवाब जवाब सजै ॥१००॥ सुणि(णी) वात निवाबह रंजि बहू, दिवराय दि(दी)यो धन माल सहू। उलटी कुछ भेटि करी अवरं, पुनि मुक्तिविजै प्रगट्यो प्रवरं
कलस- कवित ॥ छापै॥ प्रवर पुन्य परताप सकल संपत्ति पाई, वाला हु(ह)औ सुबोल अधिक नव निद्धि सिद्धि आई। पुहकर चेतन पे(प्रे?)म सिष्य साखा चिरंजीवो, विजै साख मधि विमल दि(दी)पै माधव-कुलदीवो। भूपती(ति) राव मांनै भला गच्छनायक गिणती गिणै, मुनि लाल कहै गुरु भीम को पणि राख्यो मांटिपणे
॥१०२॥ ॥ इति श्रीभीमविजै पु(पं)न्यासजी गुणवर्णण(न) छंद संपूर्णम् ॥ संवत् १८४७ का मिति प्रथम आषाढ वदि ७ दिने लिख्यतं आगरामध्ये
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