________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
26
श्रुतसागर
नवम्बर-२०१९ श्री हर्ष मुनि कृत वासुपूज्यजिन स्तवन
__ गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रस्तुत कृति वासुपूज्यस्वामीनी गुणस्तवना रूप लघु रचना छे। जो के अहीं प्रभुनी गुणस्तवना विशेषे देहस्वरुपने केंद्रमा राखी कराई छे तेथी प्रभुनी देह द्युतिऊंचाई-मुगुटादि अलंकारोना वर्णनना पद्यो विशेष जोवा मळे छ।
कृतिनी भाषा मारुगुर्जर छ। लहियानी असावधानीथी थोडा स्थानोए पदार्थ अस्पष्ट थतो हतो जे अमे नाना-मोटा कौंसमां सुधार्यो छे।
कृति विजयसेनसूरिजीना शिष्य गुणविजयजीना शिष्य (प्रायः हर्षविजय नाम हशे?)नी रचना छ। काव्यमां कवि नामनो स्पष्ट उल्लेख नथी परंतं “हर्ष” शब्दने कृतिकारना नाम तरीके अटकळ करी छे जो के तेमनी परंपरा के अन्य कतिओ विशे कंईक मळे तो वात प्रमाणिक ठरे।
प्रान्ते प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रत Zerox आपवा बदल श्री गोडीजी श्वे.मू.जैन संघ (मुंबई)ना व्यवस्थापकश्रीनो खूब खूभ आभार।
श्रीवासपज्यजिन स्तवन
॥राग-सारंग। सरसति भगवति चित्त धरी, प्रणमी सदगुरु पाय ललना। बारमो जिनवर भटि(टी)इ, हईअडलइ हरख न माय ललना,
तुं मेरे मनि वल्लहो ॥१।। जिनजी तुं मेरे मनि वल्लहो, जिउ मनि कमल दिणदलउ। उगइउ विकसीइ(?), दो(हो)इ मनि अतिआणंद ललना, तुं मेरे...॥ (आंचली) महिअल जासि सोहि सदा, वासुपूज्य जगदीस ललना। जिन तणो महिमा अति घणो, जन केरी पूरि जगीस ललना ॥२॥ तुं मेरे... अनोपम सूरति जिन केरी, निरखतां आनंदपूर ललना। भविजन भगति पूजा करि, तस घरि हुइ(सुख) भरपूर ललना ॥३॥तुं मेरे...
For Private and Personal Use Only