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श्रुतसागर
जुलाई-२०१९ ज्ञानसागरना तीरतीरे (योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज:२)
डॉ. कुमारपाल देसाई (गतांकथी आगळ..)
‘गणावू भक्त कोटीमां, नथी कांई वात ए सहेली।'
आवी जरीते अन्य काव्यमां परमात्मानुं जीभेथी रटण करनाराओ सामे चेतवणी उच्चारतां ए कहे छे के 'तत्त्वमसि' के 'सोहम्' बोलवाथी पार नथी आवतो। मात्र शब्दोथी प्रभु प्राप्त थशे नहीं, कारण के परमात्मा तो शब्दातीत छे, अने ध्यानमार्गे ज पामी शकाय छे । अखाए गायेला जीव अने ब्रह्मनी एकताना अनुभवनी याद आपे ए रीते आ जैन आचार्य आनंदभेर कहे छे
“साधनथी प्रभु वेगळा, साधनथी प्रभु सहेल; साधन साधक साध्यना एकत्वे छे गेल।"
आवा परमात्मानी झांखी मौनथी थाय छे । एनी खोज करवानी जरूर नथी। ए तो आपणा अंतरमां ज वसेलो छ । मानवीनी आ ज विडंबना छे ने के ए बहारनुं बधुं जुए छे, पण पोतानी अंदर डोकियु य करतो नथी! अने भीतरनी दुनिया अजाणी रही जाय छ । ए चंद्रनी धरती पर भले जई आव्यो होय, परंतु आत्मानी भूमि एने अजाणी लागे छ । आ अंतरमा रहेली आनंदज्योतनी जिकर करतां तेओ लाक्षणिक ढबे कहे छ :
“ज्यां त्यां प्रभुजी शोधिया, पण प्रभुजी पास; आनंदज्योते जाणीए, राखी मन विश्वास । प्रेम विना प्रभुजी नथी, करो उपाय हजार; मरजीवो प्रभुने मळे, बीजा खावे मार। निर्मल चित्त थया विना, ईश्वर ना देखाय; कोटी उपाय करो, कदी काक न धोळो थाय।"
"आ एक वर्ष दरमियान रचायेलां काव्योमां विषयवैविध्य पण घणुं छे। एमां 'नानां बाळको', 'जुवानी, 'माता, वृद्धावस्था थी मांडीने 'देशसेवा, ‘कन्याविक्रय, 'सुधारो, योग्य कर समजी', 'प्रगति', 'गरीबो पर दया लावो, ‘बळी! परतंत्रता बूरी!, 'मळो तो भावथी मळशो' अने विरोधो सहु समावी दे जेवी भावनावाळां काव्यो मळे छे, तो 'सागर', 'आंबो' के पधारो, मेघमहाराज!' जेवां प्रकृतिने उद्देशीने रचायेलां
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