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July-2019 तहत विज्ञप्ति अथवा विनतीपत्र की रचना हुई। विज्ञप्तिपत्र वास्तव में एक विशेष प्रकार का पत्र है, जिसके माध्यम से प.पू. आचार्यभगवन्तों को चातुर्मास हेतु श्रावकों के द्वारा निवेदन किया जाता था अथवा राजा महाराजाओं को प्रजा की ओर से निवेदन किया जाता था।
१७वीं शताब्दी से इन विज्ञप्तिपत्रों में चित्रों का समावेश होने लगा। इसमें प्रायः चित्र आरम्भ में ही होते हैं। सबसे पहले अष्टमांगलिक चिह्न, चौदह स्वप्न और शय्या पर विश्राम करती तीर्थंकर की माताश्री और उसके बाद नगरचित्रण होता है। नगरचित्र का प्रारम्भ जिनमंदिर, बाजार, किला, राजदरबार, प्रमुख स्मारक, देवालय आदि के चित्रों से होता है। चित्रों के बाद गद्यात्मक अथवा सुन्दर काव्यात्मक शैली में पत्र लिखा होता है और अन्त में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के हस्ताक्षर होते हैं। ४. श्रेष्ठी विमलमंत्री एवं दशार्णभद्र परंपरागत खण्ड
इस खण्ड में चन्दन, हाथीदाँत एवं चीनी-मिट्टी की बनी कलात्मक वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं जो दर्शकों का मन मोह लेती है। साथ ही यहाँ परम्परागत कई पुरा वस्तुओं का प्रदर्शन भी किया गया है जो दर्शकों को अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है साथ ही जैन धर्म एवं दर्शन के प्रति चिन्तन-मनन एवं इस सम्बन्ध में अध्ययन के लिये आकर्षित भी करती है। जैन संस्कृति की प्राचीनता एवं भव्यता से समाज की नई पीढी को परिचित कराना इस संग्रहालय का प्रमुख उद्देश्य है।
भारतीय संस्कृति की इस अमूल्य निधि को राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने अपने विहार में पदयात्रा के दौरान देश के कोने-कोने से व्यक्तिगत रूप से, विभिन्न संस्थाओं एवं संघों से सम्पर्क कर एकत्रित किया है। इस अमूल्य निधि को यहाँ पर सुरक्षित व संरक्षित किया गया है। इस समय कुल संग्रह में से मात्र १०प्रतिशत कलाकृतियों को ही प्रदर्शित किया गया है। शेष ९०प्रतिशत दुर्लभ कलाकृतियाँ भंडार में सुरक्षित हैं। ___भविष्य में बहुत बड़ी लागत से विश्वस्तरीय नूतन संग्रहालय के निर्माण की परियोजना पर काम चल रहा है। जिसमें और भी अमूल्य वस्तुओं को सुन्दर तरीके से प्रदर्शित किया जाएगा। जैनसमाज के लिए यह बहुत ही गौरव का विषय है।
(क्रमशः)
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