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श्रुतसागर
जुलाई-२०१९ श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्रीकैलाससागरसरि
ज्ञानमंदिर का योगदान
राहुल आर. त्रिवेदी
(गतांक से आगे)
सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के प्रथम तल पर सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय अवस्थित है। इस संग्रहालय में पुरातत्त्व अध्येताओं और जिज्ञासु दर्शकों के लिए प्राचीन भारतीय शिल्प परम्परा के गौरवमय दर्शन होते हैं। पाषाण, धातुप्रतिमा, ताडपत्र व कागज पर चित्रित पाण्डुलिपियों, लघुचित्र पट्ट, विज्ञप्तिपत्र, काष्ठ तथा हस्तिदंत से बनी प्राचीन एवं अर्वाचीन अद्वितीय कलाकृतियों तथा अन्य पुरावस्तुओं को बहुत ही आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक तरीके से प्रदर्शित किया गया है। साथ ही किसी भी रूप में उनकी धार्मिक अथवा सांस्कृतिक अवहेलना न हो उसका पूरा ध्यान रखा गया है। ____ संग्रहालय चार खण्डों में विभक्त है : १. वस्तुपाल तेजपाल खण्ड व ठक्कर फेरु खण्ड, २. परमार्हत कुमारपाल व जगत शेठ खण्ड, ३. श्रेष्ठी धरणाशाह व पेथडशा मन्त्री खण्ड, ४. विमल मन्त्री व दशार्णभद्र खण्ड। १. वस्तुपाल, तेजपाल व ठक्कर फेरु शिल्प खण्ड
संग्रहालय में प्रवेश करते ही प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की वि. सं. ११७४ में बलुआ पत्थर से बनी प्रतिमा दिखती है। गुच्छेदार केशयुक्त मस्तक, तिरछी पलक, अधखुली आँखें, नुकीली नाक, सुंदर होठ, श्रीवत्स, हथेली एवं पैर के तलवों पर मांगलिक चिह्न व शान्त एवं प्रसन्नभाव मथुरा शैली की विशेषता है। ___इसके अलावा पारेवा पत्थर से निर्मित पद्मासनस्थ तीर्थंकर नेमिनाथ की प्रतिमा है, जो प्रायः ७वीं शताब्दी की है। दो प्रतिहार्य (त्रिछत्र एवं गादी) युक्त इस प्रतिमा के पार्श्व में पहाड़ी एवं वृक्ष का अंकन, मुख के तीनों ओर वस्त्र-तोरण का अंकन एवं गादी के नीचे मध्य में धर्मचक्र और उसके दोनों ओर शंख एवं सिंहाकृतियों का अंकन किया गया है। शरीररचना में अंगों का पारस्परिक संबंध अच्छी तरह अंकित किया है। प्रतिमा के मुख का अधिकांश भाग नष्टप्राय हो गया है।
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