SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 July-2019 ॥५॥ ॥६॥ ॥७|| ॥८॥ ॥९॥ SHRUTSAGAR गुर दयाल गुर परमगुर, गुर दाता गुर देव। गुर का नित प्रति लीजीयें, नित शरण उगमते मेव चरणांबुज गुर भेटतां, बुध(द्ध) मार्ग बि(ब)तलाय । कांनै मीढी(डी) मात(त्र) मै(ते), शुद्ध करें चित्तलाय पेहली प्रणिपत्ति सारदा, घि(द्वि)ति(ती)ये गु(ग)णपति देव । गुण-ठिकाण गुरुजी जपुं, सात दूहै करी सेव खेडा देवत खांतस्युं, देख हुआ गहगट्ट । शंभु दरसण पेखतां, भाज' गया भय-भट्ट श्रीवरकांणे वांदतां, सीधा सघला काज । यात्रा कीधी युगतसुं, भेट्या त्रिभुवनराज ॥चाल गझल री जै ॥ वरकांणा पास है वंका, वाजित सुं(अ)वणीमें डंकाक् । पेहली पोल ही जोईक्, देखत दल ही मोईक् ऐरावण ओपै है ऐसाक्, उत्तर बादरी जेसाक् । सोहें धर्म की सालाक्, रची गुण की मालाक् वांम जीमणै सोहैंक, देख्यां मनडा मोहैंक् । गवरीनंद है गाजींक, देखत भ्रंत ही भाजीक् खेतलवीर है आसाक्, उसीका देख तमासाक् । भला भौग ही लेंवेंक्, दूसमण दूर ही खेंवेंक दूहौ- उत्तर पोले पेसतां, खरो ज खेतलवीर। पोलें उठा पोलीया, गु(ग)णपति गुणै गहीर सवैयो- सूंड प्रचंड ही दीपत सुंदर भांण विनायक सोहत भाला३, मोदक आहार करै रीरि-भस(भंज)ण पास उभी दोय सुंदर बाला, ......................* आव(यु)ध च्यार भुजा तुझ सोभित नित्य विजय कै सदा प्रतिपाला ॥१॥ ॥२॥ ||३|| ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ ३. मींडु, ४. आनंदित थर्बु, ५. नाश पाम्यो, ६. अद्भुत, ७. दिल-हृदय, ८. मोहाय, ९. गाजता, १०. भ्रांति-भ्रमणा, ११. नाखे, १२. गणपति, १३. कपाळ, * अहीं एक चरण ओळु लागे छे. For Private and Personal Use Only
SR No.525348
Book TitleShrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy