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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 श्रुतसागर जुलाई-२०१९ कविए प्रभुना जिनालय संबंधि वर्णना, बीजा कवित्तमां जेमना पुण्य साम्राज्यमा तेमणे आ गझलनी रचना करी छे ते विजयजिनेन्द्रसूरिजीनी प्रशस्ति वर्णना तथा त्रीजा कवित्तमां काव्य रचना संवतादिनी वर्णना द्वारा काव्य- समापन कर्यु छ । अहीं कविनुं नाम स्पष्ट समजी शकातुं नथी पण प्रथम कवित्तना अंतमां लखायेल 'नित्य' अथवा बीजा कवित्तना पांचमां पदमां लखायेल नेतसी' नाम कवि तरीके कल्पी शकाय खरु । प्रत परिचय प्रस्तुत कृतिनुं संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा भंडारनी १०५२८६ नं. नी हस्तप्रत उपरथी थयु छे । आ कृतिनी एक मात्र प्रत अहीं सचवायेल छे। जो के कृतिनुं लेखन पं. लावण्यसागरजी द्वारा थयु होवा छतां अशुद्ध छे । तेमांना घणा पाठो तो तद्दन भ्रष्ट छ । क्यांक-क्यांक कवि पोतानी रजुआत स्पष्टरूपे समजावी शक्या नथी तेथी रचना त्यां खंडित थती होय तेवू जणाय छे । वळी लेखन दोष होवाने कारणे अनुस्वार-मात्रा विगेरे पण क्यांक जरूर वगरना पण थया छे । कृतिनुं संपादन करती वखते उपरोक्त बाबतोने ध्यानमा राखीने अमे जरूर मुजब पाठमां सुधारा कर्या छे ते वात वाचको ध्यानमा ले। खास संपादनार्थे प्रस्तुत प्रतनी नकल आपवा बदल श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबाना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार । ॥अहँ नमः॥ O॥ अथ श्री वरकांणा पार्श्वनाथजी री गज्जल लिख्यते ॥ दूहा- सारद मात मया करो, दीजै वचन-विनोद। गुण गावेंगोडी तणा, मुझ मन अधिक प्रमोद ॥१॥ तुझ समर्यां नव निध मिलैं, तुझ समर्यां रिद्ध सिध(द्ध)। अलिय विघन दूरे हरे, आपै बहुली बुध(द्ध) ॥२॥ गु(ग)णपति गवरीनंद को, लेउ धुराधर नाम। अक्षर-बीजे ओपता, सीध चढावे काम मे(ए)कदंत सोहे भलो, गु(ग)णपति गुणे गहीर' । तीन भुवनमें दीपतौ, सोहें वडो वजीर ॥३॥ ॥४॥ १. अग्रणी, २. गंभीर, For Private and Personal Use Only
SR No.525348
Book TitleShrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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