SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मई-२०१९ गुरुवाणी आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी सिद्धाचलजीनी आध्यात्मिक यात्रा सिद्धाचल बे प्रकारे छे एक द्रव्यसिद्धाचल, बीजो भावसिद्धाचल. द्रव्यसिद्धाचल श्री शनुजय तीर्थ जाणवू अने भावसिद्धाचल पोतानो आत्मा जाणवो. कारण के सिद्ध पण आत्मा छे ने अचल पण आत्मा छे. जेम सिद्धाचल पर्वत पुद्गलना स्कंधोथी बनेलो छे. तेम आत्मा असंख्यात प्रदेशोथी परिपूर्ण छे. द्रव्यसिद्धाचल जेम पवित्र करे छे तेम सिद्धाचल रूप जे आत्मा तेनुं स्मरण करतां ध्यान करतां अनंत जन्म मरणना फेरा टाळे छे का छे के एकैकस्मिन् पदे दत्ते, शत्रुजयगिरि प्रति भवकोटि सहस्त्रेभ्यः पातकेभ्यो विमुच्यते ॥३॥ शुद्ध देवगुरू धर्मनी श्रद्धा सहित वीर्योल्लास वधते छते जे भव्यजीव सिद्धाचल सन्मुख एकेक डगलु भरे छे ते जीव क्रोड वर्ष सुधी करेलां पापोथी छूटी जाय छे. पापी अभविजीवोने तो ए गिरिराजनां दर्शन पण थवां दुर्लभ छे. ए गिरिराजनो एवो महिमा छे के त्यां जनार जीवोनी परिणामनी धारा सारी, शुभ, शुद्ध थती जाय छे, अने कर्ममेल दूर थतो जाय छे. माटे साक्षात् ए गिरिराजनां दर्शन करतां चक्षु पाम्यानुं सार्थक जाणवू अने गिरिराजना स्पर्शन थकी पग पाम्यानुं सार्थक जाणवू. ___त्यां जइ द्रव्यथी गिरिराजनुं नमन करवू अने भावथी मननी निर्मळता करवी, शुद्ध वस्त्रो पहेरी पहेलां तलाटीए समता पूर्वक चैत्यवंदन करी उपर नीचीदृष्टि राखी समभावे करी कलंक नाश करता करता चढवु अने चालतां कारणविना बीजा माणस साथे वातचित पण करवी नहि, तेम हसवू पण नहि. आत्मस्वरूपनुं चिंतवन करवू. अगर चालतां पगने थाक लागे तो मनमां विचारवू के चेतन खरो थाक आज सहन करजे के जेथी वारंवार जन्म मरणनो भय लागे नहि. वळी चालतां सारा माणसोनी साथे ए गिरिनु स्पर्शन करवू. अनादिकाळथी खराब चाल आत्मानो पड्यो छे तेनो ते वखते त्याग करवो जोइए. For Private and Personal Use Only
SR No.525346
Book TitleShrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages68
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy