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संपादकीय
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May-2019
रामप्रकाश झा
श्रुतसागर का यह नवीन अंक आपके करकमलों में समर्पित करते हुए हमें अपार प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है ।
प्रस्तुत अंक में “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत “सिद्धाचलजीनी आध्यात्मिक यात्रा” लेख प्रकाशित किया जा रहा है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक ' Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी अंतर्गत संकलित किया गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ. कुमारपाल देसाई के द्वारा आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम श्रीमती डिम्पलबेन शाह के द्वारा सम्पादित तत्त्वविजय गणि द्वारा रचित “चार कषाय सज्झाय” प्रस्तुत किया जा रहा है। इस कृति में क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों की कटुता का वर्णन उपयुक्त दृष्टान्तों के साथ किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी के द्वारा सम्पादित “नारंगापार्श्वनाथ स्तवन" प्रकाशित किया जा रहा है।
पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८१, अंक-३ में प्रकाशित “गुजराती बोलीमां विवृत अने संवृत ए-ओ” नामक लेख के आगे का अंश प्रकाशित किया जा रहा है।
पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत पूज्य आचार्य श्री यशोविजयसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य पूज्य मुनि श्री भक्तियशविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “गूढार्थतत्त्वालोक” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है।
इस अंक में "श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” नामक शीर्षक के अंतर्गत इस संस्था के द्वारा श्रुतसेवा के क्षेत्र में किए जा रहे उल्लेखनीय कार्यों तथा विविध परियोजनाओं का वर्णन प्रकाशित किया गया है।
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हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत करायेंगे ।