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________________ मान०....॥१॥ मान०...॥५॥ SHRUTSAGAR May-2019 ॥ढाल । जवरी साचोरी अकबर साहजी रे॥ मान म करयो कोय मानवी रे, मानि महुत ज जाय रे। बंध प(पडे) निचै गोत्रनो रे, मानी ते अधम कहिवाय रे उतपति जोउ नि जीव आपणी रे, तुं भम्यो नीगोद अगाद रे। कुतो विचाणो कंद मुलमांह रे, नीसाणी अनंतमि भाग रे मान०...॥२॥ नीच तणी गति ति लही रे, कुतथा कीटक जीव रे। नरग तणारे दुख ति सहा रे, पाडंति बहु रीवरे मान०...॥३॥ बंदु थकी रे उतपति ताहरी रे, तु रहुं उदर मझार रे। कलमलकुडि ते नीसरउं रे, एवडो स्यु अहंकार रे मान०...॥४॥ अहो अहो उत्तम कुल माहरु रे, मरिच भवि धरि मान रे। व्रा(ब्रा)म्हण कुल जाई अवतर्या रे, चुवीसमा श्री व्रधमांन रे मानी ते रावण राजीउ रे, त्रंण खंड जेहनू नाम रे। लंका गढ लुटावीउ रे, दस सिर छेदां राम रे मान०...॥६॥ जरासंध जग जाणीइं रे, त्रण खंड जेहनी आंण रे। मानि ते वा(बां)धवि मारीउ रे, दरगति लीधो तांणि रे मान०...॥७॥ बलवंत साधु बाहुबली रे, वरसी काउसग्ग कीधरे। चंडाल कुल जई अवतर्या रे, हरिकेसी मुनीय प्रसिद्ध रे नंदषेण मुनिवर मोटिको रे, आव्यु कोस्सा घरि बार रे। तप मदि तरणं ताणीउ रे, वृष्टि सोवन कोडि बार रे सिंहरुप बीहावी बिनडी रे, थूलिभद्र गभाह मझार रे। धन देखाड्युं निज मीत्रनि रे, श्रुत तणि अहंकार रे स्वान गर्भ नर तेहविं रे, जे करि अतिहि गुमान रे। माद्दवपणउ मन आणता रे, ते लहि सुख नीधांन रे मान०...॥११॥ जाति नि कुल मद जे करि रे, जे करि रुपनुं मांन रे। माद्दवपणउं मन आण सहि रे, श्रुत तणु म करो गुमान रे मान०...॥१२॥ धन धन साधवी मृगावती रे, गुरुणीनि नामती सीस रे। केवलनाण जोउ उपनुं रे, गुरुणीनइं करतां रीसरे मान०...॥१३॥ ।इति च्यार कषाए ध्व(द्वितीय मान कषाय स्वाध्याय संपूर्ण । मान०...॥८॥ मान०...॥९॥ मान०...॥१०॥ ५.गंदा ?.
SR No.525346
Book TitleShrutsagar 2019 05 Volume 05 Issue 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages68
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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