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श्रुतसागर ___16
मई-२०१९ पालक हुउ रे पातकी, जो(जा)ग्यो द्वेष अपार रे । पांचसई मुनिवर पीलीया, घाली घांणी मझारि रे । खंधकसुरि तेणी वारि रे, जाग्यो क्रोध अपार रे।
कीधो देश साह (संहार?) रे क्रो०...॥८॥ ध्वी(द्वी)पायन नामि रे तापसो, क्रोधि मलीउ खोहार रे। अमरापुरी सम द्वारिका, बाली कीधो ते छार रे। ज्यादव कीधो संहार रे, भरीउ पाप भंडार रे।
नाणी महिर लगा(र) रे क्रो०...॥९॥ काउस्सग दोय मुनीवर रह्या, कुणालानि खाल रे। क्रोधि मेह वरसावीउ, तप थयु आल पंपाल रे। पडिया दुइ पाताल रे, लहि दुख्ख असराल रे।
न करि साल संभाल रे क्रो०...॥१०॥ तप तपि रे बहु परि, क्रोधि ते सवि छार रे। चारित्र चोखं रे तेहनु, नवि धरि क्रोध विकार रे।
आणइ उपसम वारि रेक्रो०...॥११॥ नीर्मल त(ते) होइ रे आतमा, जिम लहो केवलनाण रे। लहिसि ते सु(स)वि नाण रे,
जे छि सुखनी खाण रे क्रिो०...॥१२॥ कुरगडु मुनि ना महिमा घणो, उपसम ल(लि)उं सीवराज रे। एहवू जाणी भो भवि जना, धोध(क्रोध) तजो सुखकाज रे। पामो भवोदधि पाज रे, पामु मुगतिर्नु राज रे।
सीद्धां वंछित काज रे क्रो०...॥१३॥ तपगच्छ नायक्ख(क) रे जाणीइ, श्री विजयप्रभुसुरिंदिरे। क्रोध न तस दस देहमां, मोटो एह मुणंद रे।। प्रणमइ नरवर वृंद रे,
सेवि मुनिवर वृंद रे क्रो०...॥१४॥ संघविजय कविरायनो, देवविजय कविराय रे। तत्वविजय कहि भविजना, म करो कोय कषाय रे। मनवंछित फल थाय रे,
दुरति(दुरीत) दुरि पलाय रे क्रो०...॥१५॥ । इति श्री च्यार कषाए प्रथम क्रोध स्वाध्याय संपूर्ण ।
४.राख,