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श्रुतसागर
मई-२०१९ कह्यो छे। लोभ पापवृक्षनो बगीचो छ। उदाहरणोमां- मांस लोलुपी मत्स्य, संगीत लुब्ध मृग, कमलमां केद थयेल भ्रमर, दीपकमां आसक्त पतंग जेवा दृष्टांतो दर्शाव्या छ । विशेष उदाहरणोमां- लोभथी भरत चक्री भाई साथे लड्या, समुद्रमां पडेल सागर, लोभथी पोताना ज पिताने हणनार सुरप्रिय, मम्मण शेठ, नंद राजा, पुत्रासक्त सगर चक्री, तिलक शेठ, कंडरिक मुनि, सिंहकेसरिया मुनि जेवा दृष्टांतोनो उल्लेख कर्यो छे । देश छोडी लोभवश पैसा कमावा विदेश जता लोकोने पण कविए आ कृतिमां वणी लीधा अने कह्यु के
‘लोभि समुद्र उलंघी जावि, सेवि वन गिरवार रे'
अंते आ लोभने त्यजी संतोषथी भीना रहेवानी सलाह आपी अने कंचनकामिनीने छोडी संतोष सरोवरमां झीलता वज्रस्वामीने वंदना करी छ। कर्ता परिचय
तपागच्छीय आचार्य विजयसेनसूरिनी पाट परंपराए गच्छाधिपति आचार्य विजयप्रभसूरिनी कृपानिश्रामा संघविजयना शिष्य देवविजय अने तेमना शिष्य तत्त्वविजय द्वारा आ कृतिनी रचना थई छ । कविना गुरु अने दादा गुरु बन्नेय कवि हता। विद्वान् तत्त्वविजयजीनो समय तेमनी अन्य कृतिओ स्तवनचौवीसी'मां रचना वर्ष (संयमभेदचंद्रयुग) वि.सं.१७१४, नेमिजिन रास'मां (चंद्रोदधिनयणानंद) नयण अने नंद लेतां १७२९, नयण अने आनंद एटले के आंखोने आनंद आपनार चंद्र लेवाय तो १७२१ थाय, २४ जिन स्तवन'मां रचना वर्ष वि.सं.१७४९ जणाय छे । आथी एमना कार्यकाळनो समय १८मी पूर्वार्ध होवाना विशेष प्रमाणो प्राप्त थाय छे। समान्यतः कर्ता द्वारा रचना प्रशस्ति कृतिना अंते अपाती होय छे। आ कृतिमां प्रथम सज्झायना अंते कविए पोतानी परंपरा दर्शावी छ। प्रत परिचय
आ हस्तप्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबाना ज्ञानभंडारमां संग्रहित हस्तप्रत क्रमांक-४५१२७ पर उपलब्ध छ । आ प्रतिनुं लेखन वर्ष अनुमानित १८मी सदी छ। प्रतिलेखके पोतानो कोई परिचय आप्यो नथी। आ प्रत सुंदर अने स्वच्छ अक्षरमां लखायेली छ। प्रतिलेखके २आ पर द्वितीय कषाय- वर्णन करता गाथा क्रम आपवामां ८ अने ९ न आपतां सीधो १० क्रमांक आपेल छे, जे क्षतिने अमे सुधारी योग्य क्रमांक आपेल छ।