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श्रुतसागर
फरवरी-२०१९
दहा
॥२८(२९)।
॥२९(३०)।
सुसनेहा...॥३०(३१)॥
॥३१(३२)॥
वल्लभ श्री जिनराजनी, मधुर सकोमल भास। आतम अमृत सींचीइ, तेणि कारतिक लील विलास
ढाल मागसिर निज मात रूडी, निरखि नंद को रूप। जूं चंद दरसम कमल विकसि, त्युं रिद्धि फूल अनूप मुक्ताफल के हार सोभि, मुद्रिकासु रतन । सजन आसा पूरि साजन, मानोजी वीर वचन
दूहा सत्यवचन मुखि बोलीइ, कीजि पर उपगार । मागसिर मासि साधुनि, माइ सोभि ए सणगार
ढाल पोस मासि पोसीइं, वर कोमल नवली काय । उष्ण भोजन साक सरसां, जमो करीय पसाय उष्ण जल अंघोल मरजन ६, तेल फूल चंपेल। मुखवास घोल तंबोल कोमल, पोसीइ सरीर की वेल
दहा सरीर-वेल इउं९ सींचीइ, तप-संयमरस सार। क्रोध कषाय नीवारीइ, तेणि पोस मास सुखकार
ढाल माघ मासि मोहोल केरां, अछि सुख अपार । नील पीत सुपंचवरणी, पंभरी सुविचार संसारनां सुख देखो नंदन, हठ म करो वीर । तेणि दिन साधुनि वीहार करतां, सीतए वाहि२२ शरीर
॥३२(३३)॥
सुसनेहा...॥३३(३४)
॥३४(३५)॥
॥३५(३६)॥
सुसनेहा..॥३६(३७)।
१६. मर्दन, १७. चमेली, १८. घोळवं, १९. एम, २०. महेल, २१. पांभरी-वस्त्र विशेष, २२. व्याप्त (ठंडी लागवी),
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