________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
फरवरी-२०१९
॥१०॥
श्रुतसागर
26
दूहा धर्म तरुवर सत्य फल, कोयल दया सुभाष । चंदन घोल विराग रस, तेणि टाढो मास वैशाख
ढाल जेठ मासि दिन दिन तपि, तेणि तपि कोमल काय । नीरमल वासित नीर जोईइ, जोईइ सीतल छाय पर घरि गोचरी करी नि पीवां, उष्ण जल विध-सार। तुम सकोमल केम भावि, मानोजी बोल बिच्यार
॥११॥
ससनेहा... ॥१२॥
दूहा
जिनवचन सीतल तरु, जिनगुण जल सुखदाय। सोए जल पीतां झीलतां, जेठ तपइ नहीं माय
॥१३॥
ढाल
आसाढ मासि मेघ केरी, घटा घन वरसंत। वीजली झमकि वीरह चमकि, मोर मुख विकसंत
॥१४॥ पीउ पीउ शबद सूमंत पंथी, आवि घरि उलसंत । तेणि दिन नीज घरि, छोडि नंदन, कीउं परदेश चलंत ससनेहा... ॥१५॥
दूहा परदेसी संसार हि, जिनधरम हि थिर वास। वलभ-मंदिर सोइ अछि, तेणि भलो आसाढो मास
॥१६॥ ढाल श्रावण आयो रूप लाओ, झरमर वरसि मेह। पय पावडी सरि लाल लोबडि, भीजि नवली देह ससनेहा...॥१७॥ पीउ पीउ सबद जगावि चातुक, वलभ उपरि नेह, । धरा पलव जलद गजि(र्जि), मयण बंदु' वरसंत । मनरंग वधि वीर तेणि दिन, राखq थिर करी चंत ससनेहा...॥१८॥ ४. सुगंधी, ५. झबकइ-चमकवू, ६.चमक्ककइ-डंखवू, ७. आनंदित थाय. ८. पादुका, ९. बारीक ऊननी
ओढणी, १०. पालव? ११. बिंदु, 1. टिप्पणमां आ पंक्ति वधारानी हशे अथवा उपरनी लीटीनी अवेजीमां रचाई हशे.
For Private and Personal Use Only