________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
फरवरी-२०१९ ने प्रसिद्ध मुख्य पाँच तीर्थों का उल्लेख करते हुए शढुंजय, गिरनार, सम्मेतशिखर, अष्टापद व आबु का नाम स्मरण किया है। उसमें विमलवसही एवं लुणावसही के प्रति विशेष भक्ति प्रदर्शित की गई है। संवत् १८०५ चैत्र कृष्णपक्ष दशमी के दिन तपगच्छाधिपति श्रीविजयधर्मसूरि म.सा. तथा गीतार्थप्रवर वाचक श्री हितविजयजी म.सा. आदि गुरु भगवंतों के पावन सान्निध्य में सीरोही से आबुतीर्थ का संघ निकाला गया था। इसका वर्णन इस कृति में पाया जाता है। यात्रा के दौरान आए विषम घाट, पत्थर, कंटक, कंकर भरी सडकों के वर्णन के साथ प्राकृतिक सौंदर्य का भी वर्णन पाया जाता है।
जंबूं कदंबक करमदा बहुं चंपक वन सहकार जी।
मालती केतकी मोगरा नित भ्रमर करें गूंजार जी॥ इस प्रकार की शब्द संरचनाएँ, निर्झर, नदियों एवं वातावरण को खुशनुमा बनाने वाली शीतल हवाओं आदि का वर्णन कृति की सुंदरता में अभिवृद्धि करता हैं। कर्ता परिचय -
प्रस्तुत कृति के कर्त्ता तपागच्छीय विद्वान श्री सिंहकुशल मुनि हैं। उनके गुरु मुनि सुबुद्धिविजय और दादा गुरु धनकुशल मुनि हैं तथा उनके गुरु आचार्य श्री विजयक्षमासूरि हैं। कर्त्ता का समय कृति के आधार पर वि.१८०५ माना जा सकता है। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में संग्रहित सूचनाओं के आधार पर कर्त्ता की अन्य तीन कृतियाँ प्राप्त होती हैं, जिनमें आदिजिन स्तवन, महावीरजिन स्तवन एवं मुनिसुव्रतजिन स्तवन का समावेश होता है। कर्ता की अन्य कृतियों तथा शिष्यपरंपरादि के बारे में विशेष जानकारी अनुपलब्ध है। प्रत परिचय - __ प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, हस्तप्रत ग्रंथागार की प्रति क्रमांक-३००७० के आधार पर किया गया है। जिसका लेखन संवत् वि.१८११ है व इसके प्रतिलेखक पं. श्री वसंतविजयजी हैं। प्रत में कुल २ पत्र हैं, यह कृति १आ से आ पर है। प्रत के प्रत्येक पत्र में पंक्तिसंख्या १० से ११ एवं प्रतिपंक्ति अक्षरसंख्या ३३ है। अक्षर सामान्य अस्पष्ट है। यह प्रति कृति रचना के समीपवर्ती काल में लिखी गई है।
For Private and Personal Use Only