SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir November-2018 SHRUTSAGAR प्रभुए कथ्या वेदो खरा ते वेदमां हिंसा नहीं, पशु रक्त ज्यां पीयूँ कथ्युं ते वेद नहि मानो सही; सर्वज्ञनो दुश्मन नहीं का एज साचो छे धणी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. कृतकर्म जीवो भोगवे सर्वज्ञ भाखे छे खरूं, सर्वज्ञ भाषित कर्मनी व्याख्या हृदयमांही धरूं; कर्मो शुभाशुभ प्रगटीने सुख दुःख आपे हरघडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. ज्यां कर्म त्यां अवतार छे मरवूज कर्मे थाय छे, अवतार इश्वरना कथे कर्मो रह्यां परखाय छे: कर्मो थकी जे मुक्त ते छे सिद्ध व्यक्ति परवडी; एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. नोवेल गप्पांज्यां लख्यां इश्वर वचन ते नहि खरे, ज्यां मोह मिथ्या वास छे ते नहि प्रभु जाणो अरे; इश्वर वचन कहेवाय नहि अज्ञानता ज्यां बहु भरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. समभाव वचनो वेद छे ए वेदथी मुक्ति मळे, आधि उपाधि सहु टळे आनन्दनी वेळा वळे; समभावधारक वेद छे प्रणमुंज तेने लळी लळी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. समता सरलताना विचारो वेद छे निश्चय कडं, निःस्वार्थता मन शुद्धतामां वेद हार्दज में लडं; चारित्र संयम वेद छे सहु वेदमां शिरोमणि, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. षट्कायरक्षाकारका अवधूत मुनियो जे दिसे, ललनापरिग्रह त्यागीनी, पासे खरा वेदो वसे, जे उन्मनीभावे रह्या ते वेद उपयोगी मणि, एवी अमारी वेदनी छे, मान्यता निश्चय खरी. 79 (क्रमशः) For Private and Personal Use Only
SR No.525340
Book TitleShrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy