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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१८ आध्यात्मिक पदो
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी
(हरिगीत छंद) (गतांक से जारी...) निर्दोष जीवन जे करे ते वेद साचा आदरो, निर्दय विचारो ज्यां भर्या ते वेद जूठा परिहरो; निर्दोष वाणी वेद छे अमृतमयी भाषा भरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. दुःखी हृदयने ठारवा आशीः नीकळती वेद छे, ब्रह्मोपयोगी वेद ज्यां त्यां लेश पण नहि खेद छे; ब्रह्मोपयोगी योगीने वंदु नमुं चरणे पडी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. वेदो अनादि काळथी आत्मप्रदेशे छे भर्या, आत्मा स्वयं वेदो सही व्यक्तिए ते प्रगटे धर्या; आत्माविषे जे ज्ञानना ते क्यांय नहि जोशो जरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. आत्माविषे वेदो सकळ निश्चय करी प्रगटाववा, ज्यां आत्मज्योति झळहळे ते वेद मनमां भाववा; वेदो निहाळो आत्मामां चिन्ता विकल्पो संहरी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. सत्ताथकी सहुजीवमां वेदो रह्या अनुभव करो, समज्या विना शब्दोविषे झघडा करीने क्यां मरो; ज्ञानी हृदयथी उठता ते शब्द वेदो ल्यो सुणी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी. ज्यां वेद एवं नाम छे ते वेद नहि सहु जातना, पर्याय शब्दे वेदना वेदो ग्रहो सहु भातना; अध्यात्मविद्या ज्यां घणी ते वेद विद्या में गणी, एवी अमारी वेदनी छे मान्यता निश्चय खरी.
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