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November-2018
SHRUTSAGAR
29 ज्ञानमांहि श्रुत अधिक, गुणे इम जिनवर भाखइ। ते आराधन भणीय ज्ञान, पंच सविधि दाखइ। सगुरु परंपर थकीय, सुणी तिण परइ कहेस। विधि आराधन थकी, अधिक हुं ज्ञान लहेसु
॥१४॥
॥ ढाल॥
॥१५॥
॥१६॥
॥१७॥
॥१८॥
॥१९॥
चेत्र अनइ चउमासि, पोस सहित छय मासा। वरजी ए तप लीजई, निज भव सफल करीजइ विस्तर नांदि विचार, सह गुरु पासि उच्चार । बंभ सहित उपवास, लघुपंचम पण मास केई वलि लघु दाखइ, मास वरस पण भाखइ। दस वरसा दस मास, बीजी करइ उल्लास उतकृष्टी जावजीव, पामइ ज्ञान सदीव । उजमणा विधि जोइ, निज भावइ करइ सोहइ पंचमि दिन उपवास, पुस्तक पूजि उल्लासि । चेई वंदन नाण, विधिसउ करइ सुजाण ज्ञान विनय बहु कीजइ, ज्ञानी तेम गिणीजइ। आसातन वरजीजइ, गुरना वचन सुणीजइ ज्ञान दियइ नर जे य, तेहनइ नही य अदेय । पुलिंद तणउ अधिकार, सिवनी भगति संभारि एहना गुण कुण जाणइ, श्रुतकेवली य वखाणइ। तसु आराधन दाखइ, ज्ञान पंचमि तप भाखइ इम ज्ञानपंचमतप तणी, विधि सुणी य भवीयण जे करइ। संसारजलनिधि तरी, हेलइ सिद्धिरमणी ते वरइ। सिरि साधुचंद सुसीस, श्रीकुलतिलक कलि कलपत्तरे । तसु सीस वर उवझाय पभणइ, श्रीभावहरख सुहंकरो
॥ इति ज्ञानपंचमी स्तवनं ॥
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॥२१॥
॥२२॥
॥२३॥
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