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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24 श्रुतसागर नवम्बर-२०१८ कृति परिचय: प्रस्तुत कृति की भाषा मारुगुर्जर है। पद्यबद्ध इस कृति में २३ गाथाएँ हैं। प्रारंभ में विषय की भूमिकारूप ८ दोहे व तत्पश्चात् दो ढाल दी गई हैं। कर्ता ने कृति के प्रारंभ में मंगलाचरण के रूप में त्रिशलानंदन, शासनपति भगवान महावीर की स्तवना की है। कृतिगत मुख्य विषय की प्रस्तुति के पूर्व कर्ता ने भूमिकारूप रत्नत्रयी की बात करते हुए ज्ञान, दर्शन, चारित्र में से सर्वप्रथम दर्शन की महत्ता बताई और कहा कि चारित्र (द्रव्य चारित्र) के बिना मुक्ति मिल सकती है, लेकिन दर्शन के बिना नहीं। इसकी पुष्टि के लिए कर्ता ने 'उत्तरज्झयण जोइ' कहकर उत्तराध्ययनसूत्र का संदर्भ दिया है। शास्त्रों में आता है कि 'सिज्झंति चरणरहिया, दंसणरहिया न सिज्झंति ।' बाद में कर्ता ज्ञान की प्रधानता को दर्शाते हुए कहता है कि 'जइ वि हु दरसण अति भलउ ए, तोई पहिलउ नाण। भले ही दर्शन श्रेष्ठ हो, परन्तु ज्ञान उसमें प्रथम है, क्योंकि दर्शन की प्राप्ति भी ज्ञान से ही होती है। इस बात की पुष्टि हेतु कर्ता धर्मदास गणि का संदर्भ देते हुए कहते हैं कि-'धरमदास गणि इम कहए, वरतर नाण संपन्न ।' क्रिया के साथ ज्ञान की तुलना करते हुए कहा कि क्रिया सुवर्ण है तो ज्ञान उसमें जड़ित रत्न है. 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' उक्ति सुविदित है। बिना ज्ञान की अकेली क्रिया मोक्ष नहीं दे पाती है। अज्ञानी करोड़ों भवों में जितने कर्मों का क्षय करता है, उतना तीन गुप्तियुक्त ज्ञानी एक श्वासोश्वास में क्षय कर देता है। तत्पश्चात् कर्ता ने ५ ज्ञान का नामोल्लेख करके श्रुतज्ञान की प्रधानता को बताते हुए कहा है कि 'जई वि हु केवलनाण वर, सवि हुं मांहि प्रधान। तउ ही जिनवर श्रुत भणीय, कहियउ अति बहुमान ॥' भले ही पांचो ज्ञान में केवलज्ञान श्रेष्ठ हो, परन्तु जिनेश्वरों ने श्रुतज्ञान के प्रति विशेष बहुमान दर्शाया है, क्योंकि केवलज्ञान तक पहुँचने के लिये भी पहले श्रुतज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार कर्ता ने भूमिका में श्रुतज्ञान की महत्ता दर्शाई है और फिर जो बहुश्रुत हैं, ज्ञानी हैं , उनकी महिमा, तेजस्विता, आंतरिक शक्ति, कार्यक्षमता, अजेयता व श्रेष्ठता की तुलना शंख, अश्व, गज, सिंह आदि विविध उपमाओं से की है। इससे हमें ज्ञानी के प्रति बहुमान भाव प्रगट होता है व ज्ञानार्जन हेतु प्रेरणा भी मिलती है। For Private and Personal Use Only
SR No.525340
Book TitleShrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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