SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 17 November-2018 ॥६५॥ ॥६६॥ ॥६७॥ ॥६८॥ SHRUTSAGAR बि कोडी बिंब भराव्या तदा, पंचवीस लाख वली उपरि मुदा। ते वारानी प्रतिमा एह, चिति म धरस्यो अवर संदेह श्री श्रीमाली न्याति मंडाण, वसइ श्रावक तिहां चतुर सुजाण । पूजा भगति जिननी बहु करइ, पुण्य भंडार निज पोतइ भरइ ए नित नाम सदा चिति धरो, भवसागर जिम हेलां तरो। जिनगुण गातां निर्मल बुद्धि, जिन गुण गातां वंछित ऋद्धि जिनगुण गाता कुटुंबनी वृद्धि, जिन गुण गातां अष्ट माहासिद्धि । रोग शोग(क) नु हइ आधि न व्याधि, जिन गुण गातां सुख समाधि संवत सशिरसकायनिधान, ए संवत्सर कह्यो परधान । आसो माशि तृतीया उजली, कर्यु तवन पूरण मनि रली जिहां हु अविचल मेरु गिरंद, जिंहा ग्रहगण तारा रवि चंद। तिहां लगई श्री ऋषभ चरित्र, भणइ गणिइ तस जन्म पवित्र ॥कलस॥ ए प्रथम नरपति प्रथम मुनिवर प्रथम भिख्याचर हवो। ए प्रथम जिनवर प्रथम केवली भाव आणी मइ स्तव्यो। तपगछपति श्रीविजयसेनसूरि श्रीविजयदेवसूरि पटोधरु। गणि गुणविजय शिष्य सिंघविजय कहि सयल संघ मंगल करूं ॥६९॥ ॥७०॥ ॥७९॥ इति श्री ऋषभदेवाधिदेवजिनराज स्तवनं संपूर्णं । लिखितं संवत १६७० वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे पुर्णिमा तिथौ सूर्यसुत दिवसे गणि श्रीगुणविजय शिष्य गिणि सिंघविजयेन लिखितं । श्री अणहिल्लपत्तन मध्ये श्री खेतलवसही पाटके वास्तव्य सुश्रावक । पुण्य प्रभावक । श्री देवगुरु भक्ति कारक साह नानजी पठन कृतेति भद्रं भूयात् ।श्रीः For Private and Personal Use Only
SR No.525340
Book TitleShrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy