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November-2018
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SHRUTSAGAR
बि कोडी बिंब भराव्या तदा, पंचवीस लाख वली उपरि मुदा। ते वारानी प्रतिमा एह, चिति म धरस्यो अवर संदेह श्री श्रीमाली न्याति मंडाण, वसइ श्रावक तिहां चतुर सुजाण । पूजा भगति जिननी बहु करइ, पुण्य भंडार निज पोतइ भरइ ए नित नाम सदा चिति धरो, भवसागर जिम हेलां तरो। जिनगुण गातां निर्मल बुद्धि, जिन गुण गातां वंछित ऋद्धि जिनगुण गाता कुटुंबनी वृद्धि, जिन गुण गातां अष्ट माहासिद्धि । रोग शोग(क) नु हइ आधि न व्याधि, जिन गुण गातां सुख समाधि संवत सशिरसकायनिधान, ए संवत्सर कह्यो परधान । आसो माशि तृतीया उजली, कर्यु तवन पूरण मनि रली जिहां हु अविचल मेरु गिरंद, जिंहा ग्रहगण तारा रवि चंद। तिहां लगई श्री ऋषभ चरित्र, भणइ गणिइ तस जन्म पवित्र
॥कलस॥ ए प्रथम नरपति प्रथम मुनिवर प्रथम भिख्याचर हवो। ए प्रथम जिनवर प्रथम केवली भाव आणी मइ स्तव्यो। तपगछपति श्रीविजयसेनसूरि श्रीविजयदेवसूरि पटोधरु। गणि गुणविजय शिष्य सिंघविजय कहि सयल संघ मंगल करूं
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इति श्री ऋषभदेवाधिदेवजिनराज स्तवनं संपूर्णं । लिखितं संवत १६७० वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे पुर्णिमा तिथौ सूर्यसुत दिवसे गणि श्रीगुणविजय शिष्य गिणि सिंघविजयेन लिखितं । श्री अणहिल्लपत्तन मध्ये श्री खेतलवसही पाटके वास्तव्य सुश्रावक । पुण्य प्रभावक । श्री देवगुरु भक्ति कारक साह नानजी पठन
कृतेति भद्रं भूयात् ।श्रीः
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