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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१८ पर्युणपर्व स्तुति
राहुल आर. त्रिवेदी भारतवर्ष पर्वो (त्योहारो) का देश है। पर्व शब्द का अर्थ है परम पवित्र दिवस। वैसे तो प्रत्येक मास में कोई न कोई पर्व आता है, किन्तु वर्षा ऋतु में जैन-जैनेतर पर्यों की बहुलता है जैसे- आषाढचौमासी, गुरुपूर्णिमा, रक्षाबन्धन, जन्माष्टमी, पर्युषण, ऋषिपञ्चमी, गणेशचतुर्थी, अनन्तचतुर्दशी, श्राद्ध, नवपदजी की ओली, नवरात्र, दशहरा, दीपावली, ज्ञानपंचमी आदि। इनमें से चौमासी, पर्युषण, नवपदजी की ओली, दीपावली एवं ज्ञानपंचमी जैसे लोकोत्तर जैन पर्व इहलोक-परलोक में कल्याणकारी पर्व हैं। उसमें भी सर्व शिरोमणि पर्व जो है वह पर्युषण महापर्व है। __ व्याकरण की परिभाषा में पर्युषण' शब्द की व्युत्पत्ति करते हैं तो परि' उपसर्ग पूर्वक वस्' धातु से 'अन' प्रत्यय लगता है और 'वस्' धातु का 'उष्' आदेश हो जाता है तथा र्' एवं 'ष' के बाद रहे 'न' का 'ण' हो जाने पर ‘पर्युषण' शब्द निष्पन्न होता है। पर्युषण का अर्थ है आत्मा के समीप रहना । इसमें तपस्यादि द्वारा शरीर का शोषण व आत्मा का पोषण होता है। पर्युषण में प्रवचन, पौषध, प्रतिक्रमण, तप-त्याग, सेवापूजा, भक्ति-भावना एवं क्षमापनादि से आत्मा को पुष्ट किया जाता है। क्षमाप्रधान इस पर्व में प्रतिदिन के प्रतिक्रमण में ४ गाथाओं वाली स्तुति, थुई, थोय अवश्य बोली जाती है। प्रसंगानुसार बोली गई स्तुति विशेष भाववृद्धि का कारण बनती है. यहाँ ऐसी ही एक प्रायः अप्रगट कृति पर्युषणपर्व स्तुति का प्रकाशन किया जा रहा है. कृति परिचय :
वैसे पर्युषण महापर्व की कई स्तुतियाँ प्रकाशित हैं, प्रत्येक वर्ष पर्युषण के समय हर्षोल्लास के साथ ऐसी स्तुति बोली जाती है। पर्युषण से सम्बन्धित ऐसी अनेक भाववाही कृतियाँ हैं, जो अप्रकाशित हैं। यदि इन कृतियों को प्रकाशित किया जाए तो अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। पर्वाधिराज पर्युषण के प्रसंग पर एक ऐसी ही कृति का प्रकाशन किया जा रहा है। चार गाथाओं में निबद्ध इस कृति में सर्वप्रथम आसन्न उपकारी, शासनपति भगवान महावीर स्वामी का स्मरण किया गया है. श्रीकल्पसूत्र की महिमा दर्शाते हुए कर्ता ने लिखा है- 'सूत्र सिद्धांत मे राजा कहीइ कल्पसूत्र जग जाणोजी' कल्पसूत्र को सर्वशास्त्रों का राजा कहा गया है तथा इसमें आनेवाले अधिकारों की बात करते हुए कहा है - ‘च्यार चरित्र जिन आंतरा कहीइ वीर पास
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