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SHRUTSAGAR
10
Septermber-2018
नेम आदि वखांणोजी थेरावली समाचारी साधु पट्टावली अवधारोजी' महावीरस्वामी, पार्श्वनाथ, नेमिजिन एवं आदिजिन इन ४ जिनेश्वर भगवंतों का विस्तृत चरित्र, अन्य जिनेश्वरों की अन्तरावली, साधु भगवंतों की पट्टावली, स्थविरावली, सामाचारी का भी उल्लेख किया गया है। जिनपूजा, संघपूजा, महोत्सव के वर्णन के साथ अंत में कर्त्ता ने गोमुख, धरणेन्द्र, पद्मावती एवं चक्रेश्वरीदेवी का उल्लेख करते हुए कृति को पूर्ण किया है। सरल एवं सुगम भाषाशैली में निबद्ध यह कृति सरलता से लोकभोग्य बन सकती है।
कर्ता परिचय :
प्रस्तुत कृति की रचना गणि रंगविजयजी के द्वारा की गई है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में उपलब्ध सूचनानुसार रंगविजयजी नाम के ९९ विद्वान प्राप्त होते हैं, उनमें से गणि रंगविजय के नाम से १३ विद्वान मिलते हैं. इनमें से प्रस्तुत कृति के कर्ता कौन हैं, उसकी स्पष्टता नहीं हो पाई है। परन्तु कृति के अंत में कर्ता के नाम से पहले वाले पद में है कि- 'देवी चक्केसरी जिन पाय सेवीजी' यहाँ जिनेश्वर भगवान के अर्थ में ‘जिन’' शब्द प्रयुक्त हुआ हो ऐसा लगता है। कई बार कवि अपना एवं अपने गुरु का नामोल्लेख गर्भितरूप से भी करते हैं. यदि यहाँ भी ऐसा मान लिया जाए ‘जिन' शब्द में गुरु का नाम गर्भित हो तो संभव है कि इनके गुरु का नाम 'जिन' शब्द से प्रारंभ होने वाला 'जिनराज' या 'जिनविजय' आदि हो । वैसे आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में उपलब्ध सूचना के अनुसार ‘प्रश्नोत्तररत्नमाला' के टबार्थ के रचयिता के रूप में खरतरगच्छीय 'मुनि रंगविजय' नामक एक विद्वान के गुरु का नाम संवत् १६९२ की प्रति क्रमांक- ६०४८० में 'खरतरगच्छाधिराज युगप्रधान जिनराजसूरिशिष्य श्रीरंगविजयेन' मिलता है । सम्भवतः इन्ही रंगविजयजी ने प्रस्तुत कृति की रचना की हो, ऐसा माना जा सकता है। विशेष संशोधन विद्वज्जन करें। प्रत परिचय :
प्रस्तुत कृति का संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा हस्तप्रत ग्रंथागार की प्रति क्रमांक- ५६२५८ के आधार पर किया गया है। जिसका लेखन संवत् वि. १९०३ है। प्रत में कुल १० पत्र हैं, यह कृति प्रथम पत्र पर लिखित है. प्रत के प्रत्येक पत्र में पंक्तिसंख्या १४ से १८ एवं प्रतिपंक्ति अक्षरसंख्या ३९ है । अक्षर स्पष्ट, सुंदर एवं सुवाच्य हैं। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में प्रस्तुत कृति की अन्य दो प्रतियाँ उपलब्ध हैं, यथा क्रमांक- ७१९२४, वि. १९ वीं एवं ९८४२३ वि. १९ वीं है ।
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