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सितम्बर-२०१८
श्रुतसागर
घणी सामग्री पडी हशे परंतु समयाभावे के तदनुरूप दृष्टिना वैकल्यथी सामग्री होते छते यात्राळुओ ते माणी शकता नथी. प्रस्तुत लेख वांची, विचारी तीर्थयात्राए जता भाविको रघवाटने छोडी दई तीर्थना बाह्याभ्यंतर सौंदर्यने माणे, तेमज वडवाओना दूरंदेशिता, उदारचरितादिगुणोने समजी, जीवनमां उतारी स्व-परना कल्याणने साधनारा बने ए ज शुभेच्छा.
प्रकाश्यमान
नवग्रंथसर्जन व संशोधन-संपादन के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों के विषय में ज्ञात हुआ है कि आचार्य श्री रत्नाकरसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्यरत्न आचार्य श्री रत्नाचलसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा श्री गोविन्दाचार्य की टीका से युक्त प्राचीन कर्मग्रन्थ (कर्मस्तव) तथा खरतरगच्छीय श्री पूर्णभद्रगणि विरचित धन्यशालिभद्रचरित्र का सम्पादन किया जा रहा है.
उपर्युक्त ग्रंथ यथासमय प्रकाशित किये जायेंगे, यह जानकारी श्रुतसागर के वाचकों तथा संशोधन-संपादन कर रहे विद्वानों हेतु उपयोगी सिद्ध होगी।
वाचकों से अनुरोध है कि इस प्रकार की सूचनाएँ यदि आपके पास उपलब्ध हों, तो कृपया हमें प्रेषित करें । ये सूचनाएँ अन्य विद्वानों हेतु अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होंगी।
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निवेदक
संपादक (श्रुतसागर)