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30
Septermber-2018
बीकानेरनी 'उस्ता' चित्र शैली
गणि श्री सुयशचंद्र विजयजी भारतना शिल्प-स्थापत्य अने चित्रकळाना विकासमां राजस्थाननो बहु मोटो फाळो छे. राजस्थानी चित्रकारोए पोतानी आगवी चित्रशैलीओ द्वारा पोतानी स्वतंत्र
ओळख उभी करी छे. विशिष्ट देहाकृति, आकर्षक वेशभूषा, नयनाभिराम रंगविन्यास तेमज तदनुरूप आभूषणादिना चित्रण द्वारा ते चित्रकारोए जाणे-अजाणे पण पोतानी प्रांतिय संस्कृति, परिवहन कर्यु होय तेवू ते चित्रोमां अनुभवी शकाय छे. जोधपुरी, जयपुरी, मेवाडी, बुंदी, कोटा, नाथद्वारी विगेरे चित्रशैलीओनी जेम बीकानेरनी पण 'उस्ता' नामे ओळखाती एक विशिष्ट चित्रशैली छे. प्रस्तुत लेखमां आपणे ते उस्ता चित्रशैलीनो संक्षिप्तमां परिचय जोई|. उस्ता कळानो इतिहास
मूळे आ कळानो उद्भव क्यां थयो ? तेनी अमोने जाणकारी प्राप्त थई शकी नथी. परंतु प्रायः विक्रमनी १६मी सदी आसपास ईरान, मुलतान, अफघानस्थान थई ते कळा भारतमां आवी तेवी नोंध मळे छे. त्यारपछी सम्राट अकबरना शासनकाळमां बीकानेरना राजवी रायसिंघजी द्वारा 'शाही चित्रकार' ना बिरूदनुं प्रलोभन आपी दिल्हीथी चित्रकारोने बोलावी अही बिकानेरमां तेमनो वसवाट करावायो. ते चित्रकारो पोताना कार्यमां अति निपुण होई 'उस्ताद' तरीके ओळखाता जे समय जता 'उस्ता' एवा अपभ्रष्ट नामथी ओळखावा लाग्या. अंते समय जता ते उस्ता शब्द ज तेमनी चित्रकळानी ओळख बन्यो.
ते चित्रकारोमां उस्ता अलिराज, शाह मुहम्मद, मुहम्मद रुकानुद्दिन जेवा अनेक ख्यातनाम चित्रकारो थया. वेल-बुट्टा जेवा प्राकृतिक चित्रण उपर सुवर्णना वरखनी कराती नकशी करवामां तेमनी हथरोट हती. तेमणे वैभवतुं प्रतीक गणाती आ कळाने राजमहेलनी छतो पर, दिवालो पर, स्तंभो पर तेमज दरवाजादि स्थानो पर चित्रीत करी. जेमांनी केटलीक नकशीओ आजे पण बीकानेरना अनुप महेल, दरबार होल, शीशा महेल, डुंगर निवास, सुरत विलास जेवा प्राचीन ऐतिहासिक स्थानो पर सचवायेली छे.
महेलादिना सुशोभन बाद राजा कर्णसिंह वडे सौ प्रथम लक्ष्मी नारायणप्रभुनु मंदिर आ चित्रकळाथी शणगारायुं त्यारबाद आ कळाना मूळ स्वरूपमां थोडा घणा फेरफारो समये उमेराता सामान्य जनसमुदायमां पण आ वैभवी कळानो प्रचार प्रसार
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