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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 29 श्रुतसागर वेयण पडिया जे जीव हवइ १०२, मरण बंधण थी छोडावइ । वेदनाए नहु हवइ, परभव तसु दुख दूहा मोह असात अन्नाण भय, उदय अलप जसु होइ । काल करी ते ऊपजइ, पंचेंदी सुभलोइ मोह उदय१०३ जेहनइ घणो १०४, भय अन्नाण असात । पंचेंदी पणि मरि करिय, एकेंद्री गति पात १०५ धरम नही जीव जग नही ०६, नही परभव अणगार । इम जाणइ मूढ मति१०७, तेहनइ थिर संसार पुण्य पाप बे१०८ जगि अछइ, जिणि छइ मुनि सुविचार । जेहनइ मनि छइ एहवउ, ते १०९९ 'रुलइ संसार निरमल न्यान चारितधर, समकित सार सरीर । भवसायर दुत्तर तरी, पहुचइ सिवपुर धीर इंद्रभूति जे पूछीयउ, धरम अधरम विशेष । श्रीमुखि भाषइ वीरजिण, तासु विचार विशेष गौतम पृच्छा एहवी, प्रश्नोत्तर अडयाल । भवियण भावइ संभलउ१११, श्रवणि सुधा सुविसाल भणइ गुणइ जे भावधरि, तिहां घरि रंग अभंगि। मनवंछित सेहला११२ फलइ, इम पभणइ नयरंग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सितम्बर-२०१८ For Private and Personal Use Only ॥४८॥ ॥४९॥ 114011 ॥५१॥ ॥५२॥ ॥५३॥ 114811 ॥५५॥ ॥५६॥ इति श्री गौतम पृच्छा समाप्ता लिखिता पं. षे (खे) महर्षमुनिना छाजहड गोत्रीय साह श्री सामीदासजी पठनार्थम् ॥ श्रीः॥छः॥ श्रीः ॥ १०२. जीवावइ, १०३. उदय हुइ (अभयप्रतौ), १०४. 'घणो' अभयप्रतौ नास्ति, १०५. पाल (अभयप्रतौ), १०६. नही जगि, १०७. मन, १०८. बेउं, १०९. नर (अभयप्रतौ), ११०. चरित्तधर, १११. सांभलउ, ११२. सोहिला.
SR No.525338
Book TitleShrutsagar 2018 09 Volume 05 Issue 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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