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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१८ आगमों में स्थान-स्थान पर “भंते!” और “गोयम!” पद इसी का द्योतक है। और यही पद्धति कठिन विषयों को समझने के लिए अतिप्रसिद्ध हुई।
भगवतीसूत्र आदि शास्त्रों में उल्लिखित छत्तीस हजार से अधिक प्रश्न इसके जीवंत उदाहरण सुविदित हैं।
प्राकृत भाषा में रचित अज्ञातकर्तृक गौतमपृच्छा पर अनेक टीका, स्तबक आदि उपलब्ध होते हैं। जिनसे गौतमपृच्छा की उपादेयता का सहज अनुमान होता है।
प्रस्तुत गौतमपृच्छा संधि भी इसी जिज्ञासा-समाधान पर आधारित है। विभिन्न प्रकार के ४८ प्रश्नों को प्रकटकर परमात्मा महावीर से प्राप्त समाधानों को काव्यात्मक रूप देते हुए वर्णन किया गया है।
जिज्ञासा-समाधानों को संक्षेप में काव्यात्मक रूप देना दुष्कर कार्य है। वाचकवर्य नयरंगजी महाराज ने अपनी शैली में इस प्रकार का गुंफन कर श्रमसाध्य कार्य किया है। इसमें दोहा छंद का प्रयोग हुआ है ।
जैन मारुगुर्जर कवियो में प्रस्तुत रचना का निर्माण संवत् इस प्रकार दिया है सं.१६१(७?)३ वै.व.१० सिंधुदेशे शीतपुरे। अर्थात् सिंधुदेश (वर्तमान पाकिस्तान) के शीतपुर गांव में विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के पश्चात् १६१३ या १६१७ वर्ष की वैशाख कृष्णा दशमी के दिन प्रस्तुत रचना की गई।
हस्तप्रत में कुछ स्थानों पर छंदानुसार पंक्ति का सामंजस्य करते हुए छन्द संख्या दी गई है। प्रस्तुत संपादन में अविकल छंद संख्या दी गई है। ___यद्यपि खरतरगच्छ साहित्य कोश, जैनगुर्जर कविओ और आदर्श प्रति में गौतमपृच्छा अथवा गौतमपृच्छा भाषा दोहा लिखकर कृति का परिचय दिया गया है, परन्त आचार्य कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर कोबा गांधीनगर की प्रति क्रमांक १७६१ के अंत में गौतमपृच्छा संधि बतलाया है।
संस्कृत के महाकाव्य सर्गों में, प्राकृत के महाकाव्य आश्वासों में, अपभ्रंश के महाकाव्य संधियों में और मारुगुर्जर के महाकाव्य अवस्कंधों में विभक्त होते हैं। परवर्ती कवियों ने अनेक संधि वाले खंडकाव्यों को संधि काव्य नाम दिया है। कृति का नामाभिधान तदनुसार किया गया है।
गौतमपृच्छा आधारित काव्यात्मक कृतियाँ निम्नलिखित उपलब्ध होती हैं
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