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केशरीयाजी तीर्थनी एक महत्त्वपूर्ण अप्रगट कृति
गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी तीर्थना इतिहास अंगे___मेवाडनी राजधानी उदयपुरथी ६५ कि.मी. दूर आवेलुं केसरियाजी तीर्थ जैनोनुं एक प्रसिद्ध तीर्थ छे, ज्यां आदिनाथ भगवाननी श्यामवर्णीय प्रतिमा बिराजमान छ। अनुश्रुति अनुसार लंकापति रावण आ प्रतिमानी पूजा करतां, परंतु लंकाना विजय बाद रामचंद्रजी ज्यारे ते प्रतिमाने पोतानी साथे लइ गया त्यारे मार्गमांज उज्जैननगरमां ते प्रतिमा स्थिर थइ जता ते ज जग्या उपर भव्य जिनालय निर्माण करी प्रतिमाने तेमां स्थापित करवामां आवी। आम वर्षो सुधी ते प्रतिमा त्यां पूजाई। कहेवाय छे के राजा श्रीपाळनो अने तेमना ७०० कोढीयाओनो कोढ रोग आ प्रतिमाना न्हवण जलथी ज दूर थयो हतो। ____ काळांतरे कोईक कारणथी ते प्रतिमा वागडदेशना वटप्रद (बडोदा) नगरमां आवी। मोगलोए अहीं आक्रमण कर्यु त्यारे पोतानो पराजय थतो जाणी नासी जता मोगलोए आ प्रतिमाने पोतानी साथे लई गाडामां पधरावी दूरना कोई जंगलमां मूकी दीधी। एक दिवस गोवाळो द्वारा ते प्रतिमानी जाण प्राप्त थता श्रीसंघे ते प्रतिमाने लावी, लेपादिथी अक्षत (अखंड) करी शुभ दिवसे महोत्सवपूर्वक जिनालयमां स्थापित करी। जे आजे पण पूजाय छे । जैनो तेमज जैनेतरो अहीं मोटी संख्यामां यात्राए आवे छे। अहींनी आदिवासी प्रजा प्रतिमानी केसरथी पूजा करता होवाथी तेने 'केसरिया आदिनाथ' के श्याम रंगना होवाथी 'काळीया बाबा'ना नामथी पूजे छ। तीर्थनी व्यवस्था अंगे__वर्षों पूर्वे सम्राट अकबरे जगद्गुरू श्रीहीरविजयसूरिजीथी प्रभावित थई तेओने केटलाक आज्ञापत्रो (फरमानो) आप्या हता। जेमांना वि. सं. १६४८ चैत्र सुद ७ (ई.स. १५९२) ना एक फरमानमां बादशाह अकबरे केसरिया आदि केटलाक तीर्थो आचार्य श्रीहीरविजयसूरिजीने अर्पण कर्यानो उल्लेख मळे छे । तो बीजा ई.सं. १६२९-३० ना फरमानमां बादशाह जहांगीरे नगरशेठ श्रीशांतिदास झवेरीने केसरिया आदि केटलाक तीर्थोनी मालिकीना हक्को आप्या नोंधायु छ।
आम आ बन्ने फरमानो परथी आ तीर्थनी मालिकी श्वेतांबर समाजनी होवार्नु प्रतीत थाय छे।
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