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SHRUTSAGAR
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September-2017 स्वर्गवास जोधपुर में विक्रम संवत् १७५४ के ज्येष्ठ वदि ११ के दिन हुआ। आपके पट्ट पर श्री जिनमाणिक्यसूरिजी महाराज बिराजे। ___ आपके द्वारा रचित कृतियों में नवकार माहात्म्य चौपई, मौन एकादशी स्तवन, दशवैकालिक सूत्र सज्झाय एवं दादा गुरुदेव के स्तवनादि प्रमुख हैं। संभवतः सभी कृतियाँ अद्यावधि अप्रकाशित हैं। प्रति परिचय ___ प्रस्तुत सामायिक बत्तीस दुषण सज्झाय की हस्तलिखित प्रति की प्रतिलिपि आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा से प्राप्त हुई है। उपरोक्त ज्ञानमंदिर में प्रस्तुत कृति प्रति संख्या ५९०३६ पर संग्रहित है। प्रति में १२ पंक्तियाँ प्रति पृष्ठ पर
और २४ अक्षर प्रति पंक्ति में स्पष्ट वाच्य है। अक्षर मिलान हेतु राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के प्रति संख्या ३१२२५ का भी उपयोग किया गया है। संपादन हेतु प्रति की उपलब्धता के लिए संचालकों का हार्दिक आभार । प्रस्तुत कृति खरतरगच्छ साहित्य कोश में क्रमांक ४३६३ पर अंकित है।
आचार्य श्रीजिनलब्धिसूरि विरचित सामायिक बत्तीस दूषणकथन सज्झाय
॥दोहा॥ भवियण उपगारह भणी, श्री जिणवर वर्धमान । पोण पुहर लगि उपदिसे, अद्भुत वाणि वखाण सामायक व्रत आदरो, कर मन वच दृढ काय । टालो दोष बत्तीस ए, जे सिद्धांत कहाय
॥ढाल १॥राजा राज करे जय नामे एहनी॥ सामायक व्रत सूधो धारो, वारो सगला दोषजी। सुर नर गति सुख भोगवि अनुक्रम, पालो अविचल मोखजी कोडि वरस अगन्यानी तप तपि, तोडे पाप नो नासजी। तितरेहीज एके सामायक, लाभ हुवै सुविलासजी कनककोडि इक दान ज दीजे, कीजै सोवन जिनगेहजी। अथवा इक सामायक लीजै, फल सम होय निसंदेहजी
॥१॥
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॥३॥
॥४॥
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