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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 18 सुध श्रावक बारह व्रतधारी, समकित सुध सुभमन्नजी । पिण विण समता स्वाद न पावे, लुण पक्षे जिम अन्नजी गृहकारिज तजि ले सामायक, तास जनम सुप्रमाणजी । साधु सरीसो ते कहि श्रावक, ए श्रीजिनवर वाणिजी चंद किरण सम उज्जल जस तस, चंद्रजसा राजानजी । सामायक व्रत रे अनुभावे, तुरत थयो निरवाणजी बारह काय तणा तिहां दूषण, टालेवा सुजगीसजी । मनना दस तिम वयण तणा दस, ए दूषण बत्तीसजी सुभथानक पडिलेही सुभपरि, आगलि थापना मांडिजी । विधिपूर्वक सामायक लीजै, पंच प्रमादसुं छांडिजी गणभेदे विधि भेद अनंतो, तेहनी विधि न कहायजी । पिण निजगच्छ परंपरा जाणी, करवी सही चितलायजी पालगठी पूरी नवि बेसे, पहिलो दूषण एहजी । थिर आसण थापे नवि बीजे, अथिरासण नवि तेहजी चंचल दृष्टि चिहुं दिस राखे, चकित थयो जिम चोरजी । कारिज सावज वलि आरंभे, ए छे दोष अघोरजी अडकण लेइने नवि बैसे, व्रतधारी सुविवेकजी । नवलवधू परि अंग न गोपे, छट्ठो दूषण छेकजी आलस अंग मोडे सातमे, आठमे कडका त्यागजी । मैल उतारण नियम सु नवमे, दसमै खाज विभागजी सुख हेते न करे वीसामण, बारमे निद्रा नासजी । दूषण एह कायारा वरजे, सुध श्रावक सुविलासजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ढाल २ ।। तिमरी पासै वडलुं गाम एहनी ॥ हिव दूषण दस वयणसुं टाले, सूधो सामायक व्रत पाले । कुवचन नवि भाखे मुख करीने, पहिलो दूषण निज मन धरिने अकस्मात अणचिंती वात, केलवी आल दीयै करि घात । बीजो दूषण एह संभारी, दूषण नवि दाखे व्रतधारी For Private and Personal Use Only सितम्बर-२०१७ ॥६॥ ॥७॥ 11211 11811 118011 ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ 118811 ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥
SR No.525326
Book TitleShrutsagar 2017 09 Volume 04 Issue 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size9 MB
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