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SHRUTSAGAR
August-2017 स्थूलभद्रजीए अन्तिम श्रुतकेवळी भद्रबाहु स्वामी पासे जई पूर्वनो अभ्यास कर्यो. एक वखत तेमनी सात बहेनो तेमने वंदन करवा आवी. ते वखते पोतानुं ज्ञान बताववा सिंहनुं रूप कर्यु. आ वातनी भद्रबाहुस्वामीने खबर पडतां तेमणे स्थूलभद्रजीने वधु विद्या माटे अयोग्य जाणी पूर्व- ज्ञान आगळ आपवानी ना पाडी, पण श्रीसंघनां आग्रहथी छेल्लां बाकी रहेलां साडात्रण पूर्व मूळमात्र शिखव्यां. आ रीते स्थूलभद्रजी १०॥ पूर्व अर्थ सहित अने ३॥ पूर्व मूळ शीख्या. तेओ अंतिम चौद पूर्वधर थया, तेमणे कोशा वेश्याने प्रतिबोधी श्राविका बनावी हती. तेमने माटे कयुं छे केः
केवली चरमो जंबूस्वाम्यथ प्रभवः प्रभुः । शय्यंभवो यशोभद्रः संभूतिविजयस्तथा। भद्रबाहुः स्थूलिभद्रः श्रुतकेवलिनो हि षट् । जंबुस्वामी छेल्लां केवळी थयां अने स्थूलिभद्र सुधीनां छ आचार्यो श्रुतकेवळी
थयां.
स्थूलिभद्रजीनां समयमां एक महान् राज्यक्रान्ति थई: नंद वंशनो विनाश थयो अने महापंडित चाणक्य मंत्रीश्वरे मौर्य साम्राज्यनी स्थापना करी. आ अरसामां ज जैनसंघमां अव्यक्त' नामनो लीजो निह्नव' थयो.
(क्रमशः)
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1 वीर नि.सं.६०९ सुधीमां ७ निह्नवो थया. निह्नव एटले सत्यने गोपववं. भ.महावीरना अविभक्त संघमां निह्नवोए सिद्धांतभेद अने क्रियाभेदथी नवा मतो काढया छे. प्रथमना बे निह्नवो जमाली अने तिष्यगुप्त भ. महावीरना निर्वाण पूर्वे अनुक्रमे १४ अने १६ वर्षे थया छे. तेथी तेमनो विशेष परिचय नथी आप्यो. बाकीनानो पण विषयांतरना भयथी नथी आप्यो. जिज्ञासुओए ए वस्तु आवश्यक नियुक्ति तथा विशेषावश्यक भाष्यमांथी जोवी.
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