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॥२॥
श्रुतसागर
अगस्त-२०१७ सुरपतैनपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम्
॥२॥
(इम कही कलश ढालवो) ॐ ह्रीं श्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय] जलं चन्दनं' अक्षतं फल फूलं धूपं दीपं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ।।
॥ अथ त्रीजी पूजा॥
॥दुहो॥ कर-कांडे प्रभु पूजीये, पूजंता बहुमान; लोकांतिक वचने करी, दीधां वरसी दान
॥१॥ ईक्षुवंशी आदि जिन, श्रेयांसने घरे स्वामि; आव्या अब्द-पअंतरै', वाल्हो विहरण जाम
॥ ढाल ॥ जात्रा नव्वांणु करीये विमलगिर जात्रा- ए देशी॥ ईक्षुरस-अधिकारे मेरे प्यारे, त्रीजी पूजा विचारे; अक्षय त्रीज ति वारे मेरे प्यारे, ईक्षुरस अधिकारे (टेक) जिमणो हाथ पसारे हो जिनजी, डावो कर तव वारे; बिहुँमा कुंण ऊछो कुंण अधिको, संपे काज सुधारे ॥१।। मेरे० त्रीजी० जिमणो कर कहे जगमां हुं अधिको, लोकमां लाडिकवाह्यो; वींटी वेढ पणुं(हुं)चा पहेरुं, मूछे वल वलि वाह्यो
॥२॥ मेरे० त्रीजी० मे सो पुत्रने राज्य समढ़ें, भाले तिलक बनाव्यां; सुनंदा सुमंगला केरां, पाणीग्रहण कराव्यां
॥३।। मेरे० त्रीजी० छत्र चामर रेखा कर दक्षण, दक्षणि मस तिलकादि; एक हजारने आठ छे लक्षण, जिमणे ऊपमा जादी (दि) ॥४॥ मेरे० त्रीजी० दान संवत्सरि ते मे दीधां, अम्हे वाले भोजन आपूं; लेखण लेई सरवने हूं लिखु, दीसे नहि तुझ दापूं'
॥५॥ मेरे० त्रीजी० डावो कहे हूं ढाल धरुं जो, तो तूं रहे जीवंतो; धरमध्वज लेई धरम कर्या मे जो, तो तूं लक्षण श्रीवंतो ॥६॥ मेरे० त्रीजी० एक टीको करे एक कंकावटि, भोजने माखी उडावे; एक मूछ तो एक दरपण साहे, एक पकडे एक साहे' ॥७॥ मेरे० त्रीजी०
1. (1 वर्ष) पछी, 2. (?), 3. दक्षिणा, 4. सहाय करे.
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