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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 15 August-2017 ॥ अथ बीजी पूजा॥ ॥हा॥ ॥१॥ ॥२॥ वीस लाख कुमरपदे, त्रेसट्ठि पूरव राज; लाख पूरव समता वर्या, लेई संजम साज जानुबले काउसग्ग रह्या, विचर्या देश-विदेश; खडा खडा केवल लघु, पूजो जानुनरेस ॥ ढाल ३॥ आपो आपोने लाल मुझने मूंघा मूलना मोती- ए देशी॥ पूजो पूजोने लाल पूरणब्रह्म प्रभुने(टेक) श्रीआदेश्वरजी अलबेला, चारित्र लेइ विचरता; वाचंयमपद' जोगने धरता, पूरवा भवभ्रमगरता ॥१॥ पूजौ० सोवे बेसे नहि ते स्वामी, ढींचणे दृढ तनु धारे; पूरव कर्म प्रयासे प्रजाले, श्रमतापे मन वारे ॥२॥ पूजौ० काया माया मन अवरूंधी, घोरोपसरग घमंडे: द्रव्य क्षेत्रने कालथी भावे, वाल्हो वसे नव खंडे ॥३॥ पूजौ० अप्रतिबद्ध वायु परि विचरे, जाणे जगने झूठो; कोइ कोइनुं नथी इणे संसारे, कुंण रुठो कुंण तूठो ॥४॥ पूजौ० ध्यान धरे ढींचणे कर धारी, नेत्र हृदय दृग निरखी; सहस वरस लगि इम प्रभु विचर्या, नहि मन कोप अमरषी' ॥५॥ पूजौ० जानुबले अघओघ' प्रजाली, केवलकमला पामी; पूरव नव्वाणुं वार पधार्या, श्रीसिद्धाचले स्वामी ॥६॥ पूजौ० जानुबले जीवनजी चढीया, समवसरण सोपाने; ते कारण प्राणी ! तुम्हे पूजो, प्रभु-ढींचण एकध्याने ॥७।। पूजौ० ढींचणथी ढींचण दृढ थावे, ढींचणे उठी धावे; ढींचणथी वयरी वसुधा वसि, ढींचणे तिलक धरावे ॥८॥ पूजौ० इंद्र चंद्र नागेंद्र सरीखा, पूजे प्रभुने भावे; उदयसोमसूरि इणि परि उत्तम, बीजी पूजा बनावे ॥९॥ पूजौ० जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स। बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहस्स 1. (?), 2. भवमां भ्रमणरूपी खाडो, 3. ईर्ष्या, 4. ओघ = समुदाय. ॥१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525325
Book TitleShrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size9 MB
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