________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
जून-२०१७ दलवु भरडवों शेकवों, खांड वरवां संख्याइ जी; अधमण त्रिणमण पांचमणा, बिमण पणि संख्याइ जी ॥३॥ पापकर्म० विहल गाडोनइ पोठीउ, भाडई करिवा तेह जी, मोटी गुणा पांच ज रे, राख्या मोंकला तेह जी
॥४॥ पापकर्म० मीण सेर दोई मोकलों, केश वाणिज्य पचखांण जी; हथीआर ज राखवा नहीं, लेवइ देवइ न आंण जी ॥५॥ पापकर्म० घरटी घाणी शस्त्र जे, पापो पग रणजे रे; नवि करुं राखं तेहनइ, गुरुमुख पचखां तेण रे
॥६॥ पापकर्म० टालइ निज आभनइ, उखला चूला पांच जी; खडी दश सेर मोकली, सोल रूकनइ धनसंच जी ॥७।। पापकर्म० कुभार कूटि वरस प्रतइ, रूपीया पणि पंच रे; पनर सेर कंकोडी कही। विलेपन मन(ण) पंच रे ॥८॥ पापकर्म० साबू सेरू पनर ग्रहुं, आमला सेर दश जी; आरीठा पनर सेर, मोटा वाहण निषेश जी
॥९॥ पापकर्म० गंधीयाणो सवहिइ मली, रूपीआ पंच परमाण जी, बीजी सह जयणा कही, मोटइ कारण मंडाण रे
॥१०॥ पापकर्म०
ढाळ इणि परइ व्रत पालीजै भविजणा, छ छंडी चितधारि सनेही; राखी जइ रूडी परइ एहनइ, चित माहि चीतारि सनेही ॥१॥ इणि० सावधान थइनइ समकित पालीई, टालीइ एहोनो भंग सनेही; जाणिइ भंग जिन दिन आपणइ, आबिल जाणी करीइ निसंग सनेही ॥२॥ इणि० तपगछमंडण तिम रणइ, सकल साधु शिरदार सनेही; पंडित दयाविजइ गुरुनामथी, सुखविजइ सुखकार सनेही ॥३॥ इणि पर उपगारइ हेतइ को बार व्रतनो सज्झाय सनेही; श्राविक राधा ए हेतइ कर्यो, सुणतां सुखदाय सनेही ॥४॥ इणि ॥इतिश्री बारव्रत सज्झाय संपूर्णम्॥संवत्१७६६वर्षे पोस सुदि १३ सोमे
लिखत॥श्री॥श्री॥छः॥
For Private and Personal Use Only