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श्रुतसागर
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जून-२०१७ बावीस प्रकारनां अभक्ष्य श्रावक माटे वर्ण्य छे. जैन धर्मथी प्रभावित आत्मा नीचेनी २२ अभक्ष्य वस्तुओनो त्याग करे. १. वडना फळ, २. पीपळानां फळ, ३. प्लक्ष जातना पीपळानी टेटीओ, आ पांच उदुंबर जातिनां फळो छे. जेमां ४ उंबराना टेटा, ५ ककोदुंबरना टेटा, जेमां नानां नानां घणां जंतुओ होय छे, ६. दरेक जातनो दारु, ७. दरेक जातनां मांस मादक छे, बुद्धिने मंदकरनार, तमोगुणनी वृद्धि करनार अने हिंसान कारण छे, ८. मध, ९. माखण. मधमां तुरंत अने माखणमां छाशमांथी बहार काढ्या बाद ते ज रंगना असंख्य सूक्ष्य त्रस जीवोनी उत्पति थाय छे. १०. बरफ, ११. करां, असंख्य अपकाय जीवमय छे. १२. विष - प्राणनो नाश करनार छे. १३. सर्व प्रकारनी माटी–सचित्त छे अने प्राण धारण माटे अनावश्यक छे. १४. रात्रिभोजनजीवहिंसादि घणा दोषो रहेला छे. १५. घोलवडां(दहीवडी)- कठोळ अने काचा दहींनां संयोगथी बने छे माटे 'विदळ' थाय. १६. रींगणां- कामवृत्ति पोषक अने बहु निद्रा लावनार छे तथा बहुबीज छे. १७. बोळ अथाणां- त्रण दिवस पछी अभक्ष्य छे. १८. अजाण्यां फळ-फूल- प्राणहानि तथा रोगोत्पतिनी संभावना छे. १९. तुच्छ फळ- खावानुं थोडं अने फेंकी देवानुं वधारे होय छे. २०. चलित रस- वर्ण, गंध, रस, स्पर्श बदली जवाथी हानि करी शके छे. २१. बहुबीज २२. अनंत काय.
सम्यक्त्व मूळ बार व्रतमां आठमुं अने गुणव्रतमां त्रीजुं व्रत 'अनर्थदंडविरमण व्रत' छे. अर्थ= प्रयोजन अने दंड= आत्माने जे दंडे, शिक्षा करे ते दंड कहेवाय छे. पोताना घर, कुटुंब, परिवार, धन-संपत्ति के संसारमा उपयोगी साम्रगी माटे जे हिंसादि पापो कराय छे तेने अर्थदंड कहेवाय छे. अने सांसारिक जीवन जीववा माटे
जेनी जरूरियात नथी तो पण शोख, कुसंस्कारो, अज्ञानता के कर्मबहुलतानां कारणे ज निष्प्रयोजन पापारंभो करवामां आवे छे, तेने अनर्थदंड कहेवाय छे.
सम्यक्त्व मूळ बार व्रतमां नवमुं अने शिक्षाव्रतमां प्रथम सामायिक व्रत' छे. सम एटले समभाव अने आय एटले लाभ, जेनाथी समभावनो लाभ थाय तेने सामायिक कहेवाय छे. मर्यादित काळ माटे पाप-व्यापारनो त्याग करी समभावमा रहेवानां प्रयत्नस्वरूप छे सामायिक.
सम्यक्त्व मूळ बार व्रतमां दशमुं अने शिक्षाव्रतमां बीजुं व्रत देशावकाशिक व्रत' छे. 'देश' नो अर्थ छे, एक भाव अने 'अवकाश' नो अर्थ छे तेमां अवस्थान करवं, तेमां रहे. विशाळ आरंभनां क्षेत्रनो संक्षेप कही अल्प आरंभवाळा एक देशमां- एक भागमा रहे, ते देशथी अवकाशने 'देशावकाशिक' व्रत कहेवाय छे.
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