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बार व्रतसज्झाय
___ श्रीमती डिम्पल निरव शाह जे जिनने अने जिनना वचनने माने ते जैन कहेवाय. जैननी मान्यता जिननी मान्यताथी जुदी न होय. धर्म जिनाज्ञाने आधीन रहेवामां रहेलो छे. माटे ज जिनेश्वर देवनी आज्ञाने मान आपवानुं जैन- प्रथम कर्तव्य छे. जैन श्रावके कुदेव, कुगुरू अने कुधर्मनी मान्यतानो त्याग करीने सुदेव, सुगुरू अने सुधर्मनी दृढ मान्यता राखवी जोईए. अने आ मान्यता शुद्ध सम्यक्त्व धारण करवाथी ज मळे छे. सम्यक्त्वनी सलामती उपर ज धर्मनो आधार छे. ___ आम, धर्म शुद्धिनो आधार व्यवहार शुद्धि नथी. व्यवहार शुद्धि जाळवनार जैन श्रावक ज देव-गुरु-धर्मनी शोभा वधारी शके, अने आ शुद्धि केळववा जो कोई वस्तु सर्वथी अधिक अगत्यनी होय तो ते एक ज छे, मनशुद्धि. मन ज कर्म बंधनमां तथा कर्मक्षयमां कारणभूत छे. एटला माटे पापमय व्यापारोमांथी मनने रोकी पवित्र चिंतनमां अथवा कल्याणकर ध्यानमां तेने जोडq ए अत्यावश्यक छे. पवित्र मन द्वारा थयेली प्रार्थना फळ आप्या वगर रहेती ज नथी. कदाच संपूर्ण पवित्र मनथी देवमंदिरमा न पण जवाय कारणके मनने दृढपणे वशीभूत राखq ए सहज वात नथी. पण व्रत आपणा हृदय उपर पवित्रतानी असर करे छे. आपणा मनने थोडा क्षण पर्यंत शुचिमय बनावे एवी मानसिक तत्परता अने शुद्धि केळववानी भावना बार व्रत द्वारा संभवी शके छे.
सामान्य रीते आपणे श्रावकनां बार व्रतोथी तो परिचित छीए ज तथा आ विषय पर आपणी पासे घणु साहित्य उपलब्ध पण होय छे, परंतु आ कृतिमां कर्ताए बार व्रतोतुं महत्व समजाववा विवेचन तथा स्पष्टता साथे जे वर्णवेल छे, ते खरेखर श्रावक/ श्राविकाओ माटे अत्यंत उपयोगी तथा महत्वपूर्ण छे. प्रत व कृति परिचय : ___बार व्रत सजझाय' नामनी प्रस्तुत कृतिनुं संपादन कार्य आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबानी एकमात्र हस्तप्रतने आधारे करवामां आव्यु छे.
आ प्रतनो क्रमांक - ४०८९० छे. अद्यावधि लगभग अप्रकाशित आ प्रतनी पत्र संख्या ४ छे. अक्षर सुंदर अने सुवाच्य छे. अक्षरो पडिमात्रा अने अत्यारे प्रचलित मात्रानु मिश्रण धरावे छे जैन देवनागरी लिपिमां आ कृति लिपिबद्ध छे. प्रतनी
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