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श्रुतसागर
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चिंतादुल्लहमुक्खसुक्खफलए, अउव्वकप्पदुमे । 1 +lk 16 ॥६॥
जयगुरूत्था इव पओत्था ॥६॥
अवइन्ने कप्पतरू, प्र{<I K..I :४. LACE K ६४ तइएणं, इमाइ उस्सप्पिणी p{'त्र' +I^४<I ! +Jatta'४'
अरएणं
जम्मे ।
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फुरिअं कणगमएणं व, कालचक्किक्कपासंमि
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चिरधरिअनलिणपत्ताभिसे असलिलेहिं
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दाविअविज्जासिप्पो,
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पत्तो ।
जंमि तुमं अहिसित्तो, जत्थ य सिवसुक्खसंपयं K ASOJAJ " ४J ^{+J* ते अट्ठावयसेला, सीसामेला गिरिकुलस्स DE ASES EC PR +LIEVEI LE धन्ना सविम्हयं जेहं, झत्ति कयरज्जमज्जणो हरिणा ।
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अप्रैल-२०१७
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॥५॥
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वज्जरिआसेसलोअववहारो ।
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जाओ सि जाण सामिअ, पयाऊताऊ कयत्थाऊ
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॥७॥
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