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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 SHRUTSAGAR February-2017 “घास खाने पर भी अमृत समान शुद्ध-श्वेत दूध देती हूँ, मेरा गोबर घर लीपने में काम आकर घर की शोभा बढ़ाता है, गोमूत्र रोगों को दूर करता है और पूंछ में अनंत देवों का वास है.” तेनैतदप्युपमानं न युक्तम्- अतः ये भी उपमा योग्य नहीं है. ततोऽन्येनोक्तम्- येषां न विद्या० मनुष्यरूपेण तृणानि मन्ये ॥ तच्छ्रुत्वा तृणजातिराह ___ गवि दग्धं रणे ग्रीष्मे, वर्षाहेमंतयोरपि। नृणां त्राणमहं यत् स्या, तत्समत्वं कथं मम ॥ यह सुनकर धनपाल ने कहा जिस व्यक्ति में विद्यादि गुण न हों, वह मनुष्यरूप में तृण(घास) के समान माना जाता है। यह सुनकर तृणसमूह ने कहा- मेरा उपयोग करने पर गाय दूध देती है। ग्रीष्म ऋतु में चलते समय पाँव जलने से, वर्षा ऋतु में कीचड़ में गिरने व फिसलने से रक्षा करता हूँ और हेमंत ऋतु में घास पर चलने से आँख की ज्योति सतेज होती है। अतः पूर्वोक्त गुणहीन मनुष्य की समानता मुझसे कैसे हो सकती है? सामान्योपमानं महतां न रोचतेअर्थात् महान् लोगों को सामान्य उपमा देनी अच्छी नहीं होती। ततः पण्डितेन प्रोक्तम्- येषां न विद्या० मनुष्यरूपेण भवन्ति वृक्षाः ॥ तच्छ्रुत्वा वृक्षाः प्राहुः छायां कुर्मो वयं लोके, फलपुष्पाणि दद्महे । पक्षिणां सर्वदाधारा, गृहादीनां च हेतवः ॥ पुनः पण्डित ने कहा जिस व्यक्ति में विद्यादि गुण न हों, वह मानव रूप में वृक्ष के समान है, यह सुनकर वृक्ष कहने लगे- हम लोक में छाया करते हैं और फलपुष्पादि देते हैं, पक्षियों को सदा आश्रय देते हैं तथा मनुष्य के लिए गृहनिर्माण हेतु साधन सिद्ध होते हैं । परोपकारिणां निरुपकारिणां साम्यं कथम्? परोपकारियों का निरुपकारियों के साथ समानता कैसी? पुनः कवीश्वरेणोक्तम्- येषां न विद्या० मनुष्यरूपेण हि धूलिपुञ्जाः ॥ तच्छ्रुत्वा 1 (ग) इति विद्वद्वचः समाकर्ण्य रेणुराह। For Private and Personal Use Only
SR No.525319
Book TitleShrutsagar 2017 02 Volume 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size11 MB
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