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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 15 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीसुपास जिन सातमा ए महालंतडे, सातमा भवन मझार । भावसुं वंदता ऊपजइ ए महालंतडे, परघल प्रेम अपार आठमा जिनघरि जायतां ए महालंतडे, पामई चित्त उल्लास प्रगट प्रभावइ दीपतु ए महालंतडे, पेखीअ श्रीजिन पास रोग सोग सवि उपशमइ ए महालंतडे, जयतां जेहनुं नाम । भावठि भीषण भय टलइ ए महालंतडे, आवई सुख अभि जनवरी-२०१७ For Private and Personal Use Only ॥५५॥ ॥५६॥ ॥५७॥ देव । पास जिणेसर पूरतु ए महालंतडे, अरथ गरथ भंडार । ऋद्धि सिद्धि सवि वाधती ए महालंतडे, पू(पु)त्र कलत परिवार नवमिं जिनघरि पेखीआ ए महालंतडे, बइठा वासुपूज्य सहजइ हेजइ प्रणमतां ए महालंतडे, पुहुचइ वंछित हेव नव जिनभवन विराजता ए महालंतडे, जीपइं देवविमान । पूरव पुण्यथी प्रकटीआं ए महालंतडे, जाणीइं नवह निधान अवर घर जिनघर तणी ए महालंतडे, संख्या न लाधुं पार । एक एकथी अति भला ए महालंतडे, दीठइ हरिख अपार आणंद उच्छव नव नवइ ए महालंतडे, कीधी चिइ-परिवाडि । कुशलिं खेमिं आवीआ ए महालंतडे, सयल संघ परिवारि शररसरसशशी (१६६५) जाणीइ ए महालंतडे, ए संवत्सरि(री) रंगि(गी) । ऋषभादिक जिनवर तणु ए महालंतडे, तवन रच्युं मई रंगि(गी) भणइं गणइं वलि सांभलइ ए महालंतडे, जे ए तवन उदार । तस मंदिरअ फलइ ए महालंतडे, सिवसुख -सुरतरु सा[र] इम थुंण्या शिवपुर सयल सुहकर उसह-पमुहजिणेसरा । सब जंतुत्राता जगविख्याता नयर नारदपुरि (री) वरा ॥ तपगच्छराजा बहु द(दि)वाजा विजयसेनसूरीसरा । तस चरणपंकजरसिकमधुकर मेरुविजय सुहंक ॥६२॥ ॥६३॥ ॥५८॥ ॥५९॥ ॥६०॥ ॥६१॥ ॥६४॥ ॥६५॥ ।। इति श्री नारदपुरी चैत्यपरिपाटी स्तोत्रम् समाप्तः।। संवत् १६६५ वर्षे फागुण सुदि १ दिने पंडित श्रीमेरूविजयगणिशिष्य मुनि लक्ष्मीविजये लिखितं ।। शुभं भवतु ॥
SR No.525318
Book TitleShrutsagar 2017 01 Volume 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size11 MB
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