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गायो एम सुपास, मंगलकमलावास । देयो शिवपुरू ए, मानव-हितकरू ए
॥ ढाल ॥
शांति जिणेसर तुं जयो, भेटवा हुं अति अलजयो, जगजयो सेवक नित हित कीजीइ ए
पंचमि जिनघरि जाईइं, संघ सहित सुख पाईंइं, ध्याईइं शांति जिणेसर सुंदरू ए विश्वसेनकुलकलसलो, अचिराउरसरहंसलो, निरमलो जगि जस जेहनु गाजतु ए
चउरासी लख गयवरू, तेतला जाणे हयवरू, रहवरू तेतली संख्या जाणीइ ए
नरवर सहस वीस सार ए, उपरि सहस वलि बार ए, सारइं ए अह निसि सेवा जेहनी ए
चउसठि सहस अंतउरी, बिमणी वार- वधू वरी,
सब सिरी लीलां जेणिं भोगवी ए
षट खंड पृथिवी साधी ए, चक्रवर्त्ति पदवी लाधी ए, बांधी ए दुरगति सेवकजन तणी ए
राजऋद्धि सवि परिहरी, संयम मारग थिर करी, तइं वरी समता-राणी आदरि (री)) ए
करम खय(थी) केव(ल)सिरी, पांमी पुहुतो शिवपुरी, सोइ सिरी देयो सेवक वांछीइं ए
इम गायो गुण-सागरू, सेवा सारइ नागरू । जिउणवरू सयल संघ सुहंकरू ए
॥ ढाल -महालंतडे नी ॥
छट्ठि जिनभवने वलि ए महालंतडे, भेटीया नेमि जिणंद । मुख दीठइ सुख उपजइ ए महालंतडे, जिम सागर वर चंद
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January-2017
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