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January-2017
॥१८॥ जय०
॥१९॥ जय०
SHRUTSAGAR
दमणो बिमणो परिमलिं, पुहवी गंध न माय । चंपक केतक(की) मालती, विकसति सुंदर जाय नवपल्लव पाडल तणो, परिमल विमल अमूल । कोमल कमल सुहामणां, वारु वेलिनां फूल नव नवि भांति विरचइ, वारु टोडर चंग। भावस्युं कंठइ ठावती, पूजइ जिनपति-अंग नव नव नाटक नाचती, वाली अंग उदार । ढावि भावि(व)भर गावती, सोहग गीति रसाल इणि परिं भावन भावती, सुंदरि(री) नमइ रंगि। नरभव-लाहो लेवती, साधइ सिद्धि अभंग
॥२०॥ जय०
॥२१॥ जय०
॥२२॥ जय०
॥ढाल॥
॥२५॥ यादव०
जिनघरि त्रि(त्री)जु सोभतुं रे, यादव गिरिवर सं(V)गि। संघ सहित साडंबरि(री) रे, ने(न)मवा नेमि सुरं[गि]
॥२३॥
यादवजी बोल दीजइजी... समुद्रविजयसुत लाडिलो रे, शिवादेविउअरमल्हार। कृपा करी हम ऊपरी रे, आवो मुझ घर-बार
॥२४॥ यादव० राजि(जी)मति इम वीनवइ रे, सुणजो यादवनारि । यादवकुलनो राजिओ रे, किम जाइ गिरनारि पावस-रितु धन आइउरे, जिरमिर वरसइ मेह। झबक झबूकई वीजूली रे, तु किम छुडइ नेह
॥२६।। यादव० बपिओ पिउ पिउ करइ रे, मोर करइ किंगार। खलखल धार नइं वहइ रे, भर्या सरवर सार
॥२७|| यादव० परदेशी पिउ आईया रे, पहचइ प्रमदा-आस। इणि अवसरि तजि(जी) रायमई रे, किम करइ योगाभ्यास ॥२८॥ यादव० दैव(देव)दैव ओलंभडा रे, भूतल पडती बाल। चेत वलइ तव रोवती रे, करनइं पिउ संभाल
॥२९॥ यादव०
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