SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 जनवरी-२०१७ ॥५॥ ॥६॥ ||७|| ॥८॥ ।।९॥ ॥१०॥ श्रुतसागर पहलिं जिनघर जाइई,पाइई परमाणंद। भीषण भवभय मेटिइं, भेटिइं प्रथम जिणंद दोष पोष विषय रचिइं, चरचिइं नाभिमल्हार । नत-पयपंकज-सुरपति, नरपति-तति हितकार भूमंडल-वर-वनिता, वनिता नयरि मझार । भूपति नाभिनरेसर, कसरि सम भुज सार तस घरि रूपइ दीपति, जीपति सुरवहु-रूप। मरुदेवी वर-राणिय, जाणिय शील-सरूप तास उअर प्रभु अवतर्या, भव तर्या सोवनवान । अनुपम सुरसुख भोगवि, योगवि देवविमान अनुक्रमि जिनपति जनमिओ, प्रणमिओ देवनिकाय । चउसठि सुरपति गायओ, ध्याइओ चित्तसुं लाय वीस पूरव लख्य बालक, पालक त्रिभुवन देव। त्रिसठि पूरव राजक, राज्य करइ सहु सेव इम पूरव लख्य योगी, भोगी नहिं भवलेश। सोइ जिन भविजन त्राता, जाता शिवपुर देश ॥ ढाल-धन्यासीनु॥ जय जय अजिअ जिणेसरू, इम गावइ गुण नारि । सोहव टोली सर्व मिली, जाणे देवकुमारि बीजे जिणघरि जाईइ, भेट्यो अजितजणंद। भाविं भगति प्रणमतां, पुहुचइ चित्त आनंद पहलुं अंग पखालीइ, पहरी दख्यण चीर। भाल तिलक काने कुंडलू, कंचन वारु सरीर निरमल जल भरी कलसलां, धूपी धूप उदार । न्हवरावइ जिन मूरती(ति), पामइ हरख अपार चंदन केसरसुं मिली, घणुंघसी घनसार । भगति भली बहु भातीसुं, विरचइ आंगी सार ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ जय० ॥१४॥ जय० ॥१५॥ जय० ॥१६॥ जय० |१७|| जय० For Private and Personal Use Only
SR No.525318
Book TitleShrutsagar 2017 01 Volume 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy