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संपादकीय
गजेन्द्र शाह दीपावली, ज्ञानपंचमी, चौमासी चौदश, कार्तिक पूर्णिमा आदि पावन प्रसंगों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ श्रुतसागर का यह नूतन अंक आप के करकमलों में सादर समर्पित करते हुए अपार आनन्द की अनुभूति हो रही है। ___ इस अंक में गुरुवाणी शीर्षक के अन्तर्गत आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. का लेख प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें संस्कारों की सुरक्षा व धर्म के प्रसारप्रचार हेतु जैन गुरुकुल के बारे में पू. आ. श्री ने बहुत ही सुंदर प्रेरणादायी बातें बतलाई हैं। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रवचनांशों की पुस्तक 'Beyond Doubt' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है।
अप्रकाशित कृति प्रकाशन स्तंभ के अन्तर्गत इस अंक में दो कृतियों का प्रकाशन किया जा रहा है. एक 'नेमिजिनशासनाधिष्ठायिका श्री अंबिकादेवी कथा' इसका संपादन ज्ञानमंदिर के सेवक ऐसे मेरे द्वारा किया जा रहा है. प्रायः अद्यपर्यन्त अप्रकाशित इस कृति का संपादन व प्रकाशन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबा के हस्तप्रत भण्डार में संगृहीत प्राचीन एकमात्र हस्तप्रत के आधार पर किया जा रहा है। दूसरी कृति प. पू. मुनि श्री आर्य मेहुलप्रभसागरजी म. सा. द्वारा संपादित 'थावच्चापुत्र चौढालिया' यह कृति सैकडों कृतियों के रचयिता उपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी म. सा. द्वारा रचित, मारुगुर्जर भाषायुक्त पद्यबद्ध सुंदर रचना है।
विविध ग्रंथमाला परिचयात्मक श्रेणी के तहत इस अंक में ज्ञानमंदिर के पं. श्री अश्विनभाई भट्ट द्वारा संकलित 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इसमें ग्रंथमाला का संक्षिप्त परिचय, ग्रन्थमाला के अन्तर्गत प्रकाशित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों व ग्रन्थकारों के विषय में आवश्यक विवरण दिया गया है। साथ ही पुनः प्रकाशन स्तंभ के तहत पूज्य मुनिश्री न्यायविजयजी म.सा. द्वारा संकलित 'केटलांक महत्त्वनां फरमानपत्रो' नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है, जो गतांक से जारी है।
आशा है इस अंक में संकलित सामग्री द्वारा हमारे वाचक लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से अवगत कराने की कृपा करेंगे, जिससे अगले अंक को और भी परिष्कृत किया जा सके।
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