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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR September-2016 हो रहे थे।) एसा य विसालच्छी लच्छी व सुदुल्लहा अहन्नाणं । जम्हा न चेव लब्भइ कुलेण रूवेण विहवेण ॥४५॥ (यह विशाल नयना अधन्य (भाग्यहीन) के लिए लक्ष्मी के समान बहत दुर्लभ है, इसी कारण कुल, रूप और वैभव से भी प्राप्त नहीं की जा सकती।) उपर्युक्त गाथाओं में उपमा अलंकार है। उपमा अलंकार की व्याख्या काव्य प्रकाश के १०वें उल्सास के सूत्र १२४ में बताई गई है-साधर्म्यमुपमा भेदे। आर्थात् दो भिन्न पदार्थ में किसी एक गुण की समानता जहाँ दिखाई जाये वहाँ उपमा अलंकार होता है। इसमें जिसकी समानता दिखाई जाती है वह उपमेय कहलाता है और जिसके साथ समानता दिखाई जाती है वह उपमान कहलाता है। उपमान सबको विदित होता है। उपमान और उपमेय का ही साधर्म्य होता है, कार्य-कारण आदि का नहीं। जिसमें उपमान, उपमेय, साधारण धर्म और शब्द वाचक इन चारों का ग्रहण होता है। दो सदृश पदार्थों में प्रायः अधिक गुण वाला पदार्थ उपमान और न्यून गुण वाला पदार्थ उपमेय होता है। इस दृष्टि से इस गाथा में आकाश उपमान और खाई उपमेय है। दूसरी गाथा में प्रासाद की उपमा देव-मंदिर से दी गई है। इसमें प्रासाद उपमेय और देव-मंदिर उपमान है। तीसरी गाथा में नगरी की तुलना लक्ष्मी से की गई है। इसमें लक्ष्मी उपमान और विशाल नयना उपमेय है। इन तीनों गाथाओं में उपमा अलंकार अभिधा शक्ति से बोध्य है। तेसिं पि दुवे पुत्ता कमेण जाया गुणेहिं संजुत्ता। कुलनहयल-ससि-रविणो सहदेवो वीरदासो य ॥३३॥ (कुलरूपी आकाश के चंद्र और सूर्य के समान उसके गुणों से युक्त क्रमशः दो पुत्र हुए जिनका नाम सहदेव एवं वीरदास था।) For Private and Personal Use Only
SR No.525314
Book TitleShrutsagar 2016 09 Volume 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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